परमात्मा रूप में भगवान

हर एक जीव को ईश्वर ने स्वतंत्रता प्रदान की है. यदि कोई पुरुष भौतिक भोग करने का इच्छुक है और इसके लिए देवताओं से सुविधाएं चाहता है, तो प्रत्येक हृदय में परमात्मा स्वरूप स्थित भगवान उसके मनोभावों को जान कर ऐसी सुविधाएं प्रदान करते हैं. कुछ लोग यह प्रश्न कर सकते हैं कि ईश्वर जीवों […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 15, 2015 5:28 AM
हर एक जीव को ईश्वर ने स्वतंत्रता प्रदान की है. यदि कोई पुरुष भौतिक भोग करने का इच्छुक है और इसके लिए देवताओं से सुविधाएं चाहता है, तो प्रत्येक हृदय में परमात्मा स्वरूप स्थित भगवान उसके मनोभावों को जान कर ऐसी सुविधाएं प्रदान करते हैं.
कुछ लोग यह प्रश्न कर सकते हैं कि ईश्वर जीवों को ऐसी सुविधाएं प्रदान करके उन्हें माया के पाश में गिरने ही क्यों देते हैं?
उत्तर यह है कि यदि परमेर उन्हें ऐसी सुविधाएं प्रदान न करें, तो फिर स्वतंत्रता का कोई अर्थ नहीं रह जाता. उनका अंतिम उपदेश हमें भगवद्गीता में प्राप्त होता है- मनुष्य को चाहिए कि अन्य सारे कार्यो को त्याग कर उनकी शरण में आये. जीवात्मा तथा देवता दोनों ही परमेश्वर की इच्छा के अधीन हैं.
सामान्यत: जो लोग इस संसार में पीड़ित हैं, वे देवताओं के पास जाते हैं, क्योंकि वेदों में ऐसा करने का उपदेश है कि अमुक-अमुक इच्छाओं वाले को अमुक-अमुक देवताओं की शरण में जाना चाहिए. चूंकि प्रत्येक जीव विशेष सुविधा चाहता है, अत: भगवान उसे विशेष देवता से उस वर को प्राप्त करने की प्रबल इच्छा की प्रेरणा देते हैं. भगवान समस्त जीवों के हृदयों में उपस्थित रहते हैं, अत: कृष्ण मनुष्य को किसी देवता के पूजन की प्रेरणा देते हैं. सारे देवता परमेश्वर के विराट शरीर के विभिन्न अंगस्वरूप हैं.
वैदिक साहित्य में कथन है, ‘परमात्मा रूप में भगवान देवता के हृदय में भी स्थित रहते हैं, अत: वे देवता के माध्यम से जीव की इच्छा को पूरा करने की व्यवस्था करते हैं किंतु जीव तथा देवता दोनों ही परमात्मा की इच्छा पर आश्रित हैं.
स्वामी प्रभुपाद

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