अमृतवेला में योगाभ्यास

कोई भी कर्म यदि ठीक समय पर और उपयुक्त अवसर पर किया जाता है, तो ठीक होता है. आजकल तो मनुष्य घड़ी और कैलेंडर का खूब प्रयोग करते हैं. समय मनुष्य की वृत्ति को भी उपयुक्त बनाने में सहायक होता है. अमृतवेले में जो ताजगी, शांति और सात्विकता की लहर होती है, वह मनुष्य को […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 20, 2015 2:28 AM
कोई भी कर्म यदि ठीक समय पर और उपयुक्त अवसर पर किया जाता है, तो ठीक होता है. आजकल तो मनुष्य घड़ी और कैलेंडर का खूब प्रयोग करते हैं. समय मनुष्य की वृत्ति को भी उपयुक्त बनाने में सहायक होता है.
अमृतवेले में जो ताजगी, शांति और सात्विकता की लहर होती है, वह मनुष्य को भी ताजा, शीतल और मनोवांछित कर्मो में प्रवृत्त करती है. दोपहर के समय का वातावरण दूसरी ही प्रकार का होता है. अत: मनुष्य को योगाभ्यास इत्यादि प्रात: काल ही में करना चाहिए. अब हमें यह देखना है कि जैसे चौबीस घंटे के दिन के हिसाब से दिन और रात इत्यादि बने हुए हैं, वैसे ही ‘कल्प घड़ी’ में भी दिन और रात हैं तथा आत्माओं के इस सृष्टि में आने के फिर अंत में यहां से जाने के भी समय हैं.
उस दृष्टिकोण से वर्तमान काल कलियुग के अंत और सतयुग के आरंभ का संगम समय है, जिसको ब्रह्म की रात्रि के अंत और ब्रह्म के दिन के आरंभ का संधिकाल भी कहा जाता है. इसे ही अमृतवेला या ब्रह्म मुहुर्त भी कहा जाता है.
यही समय योगाभ्यास के लिए सर्वश्रेष्ठ है. इसी काल में ही ईश्वर मनुष्यात्माओं को सहज राजयोग सिखाते हैं. इस रात्रि के अंत में ही प्राय: सभी मनुष्यात्माएं योगाभ्यास के फलस्वरूप परमधाम अर्थात् ब्रह्मलोक को लौट जाती हैं.
अत: अब जबकि वही समय है, तो हमें भी अपनी स्थिति में यह बात धारण करनी चाहिए कि हमें भी वापस परमधाम जाना है. इसी स्मृति से हमारी बुद्धि का लंगर इस संसार रूपी तट से उठ जायेगा.
ब्रह्मकुमार जगदीशचंद्र

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