मैहर की शारदा भवानी : जहां आज भी पहली पूजा आल्हा ही करते हैं

नवरात्र में मैहर की शारदा भवानी के दर्शन के लिए भारी भीड़ उमड़ती है. मान्यता है कि जो भी यहां अपनी मुराद लेकर आता है, उसकी मुराद ज़रूर पूरी होती है. आज हम आपको दिखा रहे हैं शारदा भवानी की आरती. इस मंदिर में रोज़ रात को पुजारी पट बंद करके जाते हैं और जब […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 22, 2015 8:34 AM

नवरात्र में मैहर की शारदा भवानी के दर्शन के लिए भारी भीड़ उमड़ती है. मान्यता है कि जो भी यहां अपनी मुराद लेकर आता है, उसकी मुराद ज़रूर पूरी होती है. आज हम आपको दिखा रहे हैं शारदा भवानी की आरती. इस मंदिर में रोज़ रात को पुजारी पट बंद करके जाते हैं और जब सुबह मंदिर का ताला खोलते हैं, तो एक ताज़ा फूल देवी की प्रतिमा पर चढ़ा हुआ मिलता है.

लोगों को हैरत भी होती है कि बंद तालों के अंदर कौन आकर मां को फूल चढ़ा जाता है. मान्यता है कि सबसे पहला फूल आल्हा-ऊदल मैहर के त्रिकूट पर्वत पर विराजमान मां शारदा को चढ़ाते हैं. उन्हें देवी मां ने ही आशीर्वाद दिया था कि हमेशा उनका प्रथम पूजन वही करेंगे. पूजा से पहले अलस्सुबह लोगों को पवित्र सरोवर में किसी के स्नान करने की आवाजें भी सुनाई देती हैं, लेकिन कोई दिखाई नहीं देता.

आल्हा ने चढ़ाया था अपना सिर : 12वीं सदी के युग पुरु ष आल्हा ने महोबा से यहां आकर 12 वर्ष तक घोर तपस्या की और मां को अपना शीष भेंट किया था. मां ने उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर अमरत्व का वरदान दिया. मान्यता है कि आज भी सबसे पहले आल्हा ही मां की पूजा करते हैं. हालांकि, किसी ने भी उन्हें पूजा करते नहीं देखा.

लेकिन, मंदिर के प्रधान पुजारी देवी प्रसाद इस बात का दावा करते हैं कि पट खुलने से पहले कई बार प्रतीत हुआ है जैसे किसी ने पूजा की हो.

वो शक्तिपीठ, जहां मां का कंठ गिरा था : पुराणों के अनुसार, पिता के यहां अपमान होने पर मां पार्वती ने खुद को हवनकुंड में भस्म कर दिया था. तब भगवान शिव गुस्से में आ गये थे और तांडव शुरू कर दिया था. इस दौरान भगवान विष्णु ने मां के शव को खंडित करने के लिए सुदर्शन-चक्र चलाया था. जहां-जहां मां के अंग गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ की स्थापना हुई. कहा जाता है कि त्रिकुट पर्वत पर मां का कंठ गिरा था. इसी से यहां का नाम मैहर पड़ा.

जल्द पूरी होती है मन्नत : सतना जिले की पावन नगरी मैहर में मां शारदा विराजी हैं. वैसे तो मां शारदा के दर्शनों के लिए सालभर देश-विदेश के कोने-कोने से आनेवाले श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है, लेकिन चैत्र नवरात्र और शारदीय नवरात्र में इसका अलग ही महत्व है. मान्यता है कि एक बार जो मां के दर्शन करने आया, उसकी मुराद जल्दी पूरी होती है. यहां नौ दिन तक मेला लगता है और लाखों श्रद्धालु मन्नतें मांगने आते हैं.

अभी तक रहस्य है मंदिर की स्थापना कब और कैसे हुई : मैहर के त्रिकुट पर्वत पर मां शारदा के इस मंदिर की स्थापना कब और कैसे हुई,यह अभी तक एक रहस्य बना हुआ है. मां की मूर्ति के नीचे 10वीं सदी का एक शिलालेख है.

इस शिलालेख में अंकित है कि ओड़िशा का एक बालक दामोदर यहां गाय चराता था और मां की आराधना करता था. उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर मां ने उसे दर्शन दिये और उसकी इच्छापूर्ति करते हुए त्रिकुट पर्वत पर विराजमान हुईं. वहीं, एक और मान्यता यह भी है कि 2000 साल पहले आदि शंकराचार्य ने मां को यहां स्थापित किया.

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