शुभ फलदायी है पुष्य नक्षत्र
भारतीय संस्कृति पूर्ण रूप से सौरमंडल से जुड़ कर दैनिक क्रिया-कलापों का परामर्श देती है. सौरमंडल में बहुत से तारागण हैं, परंतु ज्योतिषियों ने प्रकृति, आकृति और महत्ता के आधार पर 27 नक्षत्रों का विशेष रूप से चयन किया है. इन नक्षत्रों में पुष्य-नक्षत्र अत्यधिक प्रभावशील एवं मनुष्य का सहयोगी नक्षत्र माना जाता है. सौरमंडल […]
भारतीय संस्कृति पूर्ण रूप से सौरमंडल से जुड़ कर दैनिक क्रिया-कलापों का परामर्श देती है. सौरमंडल में बहुत से तारागण हैं, परंतु ज्योतिषियों ने प्रकृति, आकृति और महत्ता के आधार पर 27 नक्षत्रों का विशेष रूप से चयन किया है. इन नक्षत्रों में पुष्य-नक्षत्र अत्यधिक प्रभावशील एवं मनुष्य का सहयोगी नक्षत्र माना जाता है. सौरमंडल में आठवें नक्षत्र का नाम पुष्य है, जो 93-20 डिग्री देशांतर से 106-40 डिग्री देशांतर के मध्य स्थित है.
अरब ज्योतिष में इसे ‘अल- नाधरो’ और ग्रीक में ‘केंरूरी’ कहा जाता है. यह नक्षत्र चीनी ज्योतिष में ‘क्चीं’ कहलाता है. इटालियन भविष्यवक्ता टोलेमी के अनुसार पिछले तीन-चार हजार वर्षों में इस नक्षत्र की चमक-दमक घटती जा रही है. इस नक्षत्र में तीन तारे हैं, जो बाण और तरकस के आकार के हैं.
सूर्य सिद्धांत के अनुसार पुष्य का शाब्दिक अर्थ पोषक तारे के रूप में है. इसका संस्कृत नाम ‘विषय’ है, जिसका अर्थ है ‘शुभ’ या ‘सिद्धि’ प्रदान करनेवाला. इस नक्षत्र के अधिदेवता गुरु वृहस्पति हैं, जो नवग्रहों में प्रधान हैं. वृहस्पति देवताओं और ज्योतिष-शास्त्र को समृद्ध करते हैं. इस नक्षत्र का आकाशीय स्वरूप भी एक तीर की तरह है.
वाल्मीकि रामायण के अनुसार भरतजी का जन्म पुष्य-नक्षत्र में हुआ, जो अद्वितीय वीर, सेवाभावी व भातृप्रेम के अनुपम उदाहरण हैं. सौरमंडल में इसका गणितीय विस्तार 3 राशि, 3 अंश, 20 कला से 3 राशि, 16 अंश, 40 कला तक है. यह नक्षत्र विषुवत रेखा से 18 अंश, 9 कला, 56 विकला उत्तर में स्थित है. मुख्य रूप से इस नक्षत्र के तीन तारे हैं, तो तीर के समान आकाश में दृष्टिगोचर होते हैं. इसके तीर की नोंक अनेक तारा समूहों के पुंज के रूप में दिखाई देती है. पुष्य-नक्षत्र शरीर के आमाशय, पसलियों व फेफड़ों को विशेष रूप से प्रभावित करता है. यह शुभ ग्रहों से प्रभावित होकर इन्हें दृढ़, पुष्ट और निरोगी बनाता है.
परंतु जब यह नक्षत्र दुष्ट ग्रह के प्रभाव में आता है, तो इन अवयवों में कुछ विकार आ जाता है. पुष्य-नक्षत्र के तृतीय चरण में जन्मे जातकों को पिता का दुख नहीं होता है, जबकि महिलाओं को माता की दीर्घायु से वंचित रहना पड़ता है. पुष्य-नक्षत्र में प्रारंभ किये गये कार्य विशेष सिद्धि प्रदायक और सफलता दिलानेवाले होते हैं. पुष्य नक्षत्र के देवगुरु वृहस्पति ज्ञान-विज्ञान व नीति-निर्धारण में व्यक्ति को अग्रणी बनाते हैं. यह नक्षत्र शनिदशा को दर्शाता है. शनि स्थिरता का सूचक है.
इसलिए पुष्य नक्षत्र में किये गये कार्य स्थायी होते हैं. पुष्य नक्षत्र का योग सर्वविध दोषों को हरनेवाला और शुभ फलदायक माना गया है. अगर पुष्य नक्षत्र पाप ग्रह से युक्त या ग्रहों से बाधित हो और ताराचक्र के अनुसार प्रतिकूल हो, तो भी विवाह को छोड़ कर शेष सभी कार्यों के लिए सर्वश्रेष्ठ माना जाता है.
पुष्य नक्षत्र में जन्मे जातक मध्यम या लंबे कद के पुष्ट देहवाले होते हैं तथा खाने-पीने पर कम ध्यान देते हैं. सभी जातकों का चेहरा सुंदर, प्रभावशाली व किसी विशिष्ट चिन्ह या तिल आदि से युक्त होता है. यह तिल आंखों के पास या चेहरे पर या चेहरे के अगल-बगल होता है. पुष्य नक्षत्र में चोरी की गयी अथवा खो गयी वस्तु प्राय: खोजने पर मिल जाती है. इसमें यदि गृह-निर्माण शुरू किया जाये, तो निर्विघ्न पूरा होता है.