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आनंदमय-अमर-जीवन

अमरत्व की संतानों! तुमने अनेक विज्ञानों का अध्ययन किया है, किंतु एक विज्ञान ऐसा भी है, जिसके ज्ञान लेने से अदृश्य पदार्थ दृश्यमान हो जाते, अश्रुत गीत सुन लिये जाते और अज्ञात रहस्य जान लिये जाते हैं. वही विज्ञान सब विज्ञानों का विज्ञान है, जिसे आत्मविज्ञान कहते हैं. सुनते है कि उसी विज्ञान से हम […]

अमरत्व की संतानों! तुमने अनेक विज्ञानों का अध्ययन किया है, किंतु एक विज्ञान ऐसा भी है, जिसके ज्ञान लेने से अदृश्य पदार्थ दृश्यमान हो जाते, अश्रुत गीत सुन लिये जाते और अज्ञात रहस्य जान लिये जाते हैं. वही विज्ञान सब विज्ञानों का विज्ञान है, जिसे आत्मविज्ञान कहते हैं.

सुनते है कि उसी विज्ञान से हम आनंदमय-अमर-जीवन और शाश्वत-शांति को प्राप्त कर सकते हैं. उसे ही ब्रह्म विद्या कहा जाता है. ब्रह्म या आत्मा ही तो सभी नामों और रूपों का परम आधार है. वही मन, इंद्रिय और प्राण को प्रकाश देता है. कहा है न उपनिषदों ने ‘मनस: मन: प्राणस्य प्राण:।’ यदि उस विज्ञान को प्राप्त कर लोगे तो सभी दुखों और भौतिक क्लेशों का निराकरण हो जायेगा; साथ-साथ आनंद का अक्षय भंडार भी आपको मिल जायेगा. जब तुम ब्रह्म के उस परम-विज्ञान का साक्षात्कार कर लोगे, तो तुम्हारा मन सांसारिकता में लिप्त नहीं रहेगा, असंतुष्ट भी नहीं रहेगा, क्योंकि ब्रह्म परिपूर्ण है.

उस परमपद को प्राप्त कर लेने पर तुम्हारी संपूर्ण इच्छाएं पूर्ण हो जायेंगी और तुम कामनारहित अवस्था की प्राप्ति कर सकोगे, जिसे राजयोग में निर्विकल्प समाधि कहा गया है. हमने यह शरीर इसी प्रयोजन के लिए धारण किया है. प्रत्येक मनुष के मन में आत्मा को प्राप्त करने के संस्कार वर्तमान हैं, आवश्यकता है तो पथ-प्रदर्शन की और लगन के साथ साधना करने की.

स्वामी शिवानंद सरस्वती

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