साथ-साथ रोशनी और अंधकार

-हरिवंश- यहां रोशनी है! अपना दिमाग देशज है. एक हद तक गंवई. इसलिए रोशनी और प्रकाश के बीच का मोटा अंतर समझ में आता है. जब घोर अंधकार हो, भादो की रात, तब रोशनी टिमटिमाये, तो उसे रोशनी की मौजूदगी मान लेनी चाहिए. अंधकार के बीच. जब चौतरफा जगमगाहट हो, पर कहीं-कहीं अंधकार झलक जाये […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 29, 2015 10:47 AM
-हरिवंश-
यहां रोशनी है!
अपना दिमाग देशज है. एक हद तक गंवई. इसलिए रोशनी और प्रकाश के बीच का मोटा अंतर समझ में आता है. जब घोर अंधकार हो, भादो की रात, तब रोशनी टिमटिमाये, तो उसे रोशनी की मौजूदगी मान लेनी चाहिए. अंधकार के बीच. जब चौतरफा जगमगाहट हो, पर कहीं-कहीं अंधकार झलक जाये या मिल जाये, तो उस दौर को प्रकाशमय कहना चाहिए.
भारत के सार्वजनिक जनजीवन का बड़ा क्षेत्र आज घोर अंधकारमय है. आजादी के पहले या तत्काल बाद तक भारत गरीब था. पर चरित्र, आदर्श और सिद्धांत के प्रकाश में जीता था. तब भी कहीं-कहीं अंधेरा था. पर वह प्रकाश का दौर माना जायेगा. आज प्रगति है, विकास है, आर्थिक समृद्धि है, तब के भारत के मुकाबले. पर सार्वजनिक जीवन में घोर अंधेरा है. न कोई आदर्श रहा और न प्रेरणा के स्रोत. कहीं-कहीं रोशनी झलकती है. निराशा में उम्मीद की किरण. कुछ आध्यात्मिक क्षेत्रों में यह रोशनी है.
जैसे योगदा सत्संग सोसाइटी या स्वामी सत्यानंद, स्वामी निरंजनानंद, स्वामी सत्संगी द्वारा स्थापित आध्यात्मिक केंद्र, रामकृष्ण मिशन, अरविंद आश्रम, रमण आश्रम, कृष्णमूर्ति स्टडी सेंटर जैसे केंद्र. अन्य धर्मों में भी ऐसे कुछ केंद्र होंगे. इनके कामकाज देश में मौजूदा अंधकार के बीच रोशनी का काम कर रहे हैं.
मसलन योगदा सत्संग सोसाइटी के काम को जानें. इसका अंतरराष्ट्रीय फैलाव है. रांची बड़ा केंद्र है. ‘ऑटोबायोग्राफी ऑफ ए योगी’ जैसी दुनिया की मशहूर पुस्तक के लेखक परमहंस स्वामी योगानंद इसके संस्थापक रहे. रांची से उनका नजदीक का रिश्ता था. इस आश्रम में शरद संगम का आयोजन होता है. शरद संगम एक तरह का आध्यात्मिक ट्रेनिंग कैंप है. या साधना शिविर कह सकते हैं. एक साधक का जीवन कैसा हो, इसमें चर्चा होती है.
आध्यात्मिक रूटीन की बात, ध्यान, प्रवचन, ध्यान विधियों का पुनरावलोकन या चर्चा, क्रियायोग शिक्षा, भजन सत्र, वगैरह. इसकी शुरुआत 1950 में गुरुदेव परमहंस योगानंद ने की थी. तब इसमें भाग लेने वाले 150 साधक थे. व्यक्ति का ईश्वर के साथ अपने रिश्ते को समझने की कोशिश. इस बार भी रांची में 18 से 24 नंवबर (2012) के बीच शरद संगम हुआ. इसमें कुल दो हजार लोग आये. स्त्री, पुरुष, युवा सभी. लगभग 19 देशों से. अमेरिका, ब्रिटेन, बेल्जियम, कनाडा, जर्मनी, श्रीलंका, थाईलैंड, हांगकांग, जार्डन, ग्रीस, स्पेन, नेपाल वगैरह से. भारत के लगभग सभी प्रदेशों से.
पिछले डेढ़-दो दशकों में शरद संगम को जाना है. कभी पूरी तरह अटेंड करना न हो सका. काम के कारण. इस बार भी अंतिम दिन शरीक हुआ. पर यह अनुभव अद्भुत है. रिखिया आश्रम (देवघर) में भी ऐसा ही अनुभव रहा. आध्यात्मिक पक्ष की बात छोड़ दें. इन संस्थाओं का प्रबंधन देखना-समझना या जानना नयी दृष्टि देता है. उच्च कोटि का अनुशासन. इन आश्रमों को बहुत वर्षों से जानता हूं. पर ये अपने बारे में लिखने से बरजते हैं.
प्रचार युग में, आत्मप्रचार के बिलकुल विरोधी. परमहंस सत्यानंद जी से मिलने में वर्षों लगे. प्रचार की दुनिया से बिलकुल दूर. वही परंपरा उनके उत्तराधिकारियों में भी. यही हाल योगदा का भी देखा. पहले शरद संगम वगैरह की खबरें लगातार हम छापते थे. उन्होंने मना किया. हमें खबरों से दूर रखिए. यह आध्यात्म का संसार है. यहां बदलाव घटित होता है. इसे प्रचार नहीं चाहिए. यह साधना है. तप है. ऊपर उठने की यात्रा है. यह आंतरिक जगत की यात्रा है. इसका बाह्य संसार के प्रचार-प्रसार से क्या लेना-देना? इस युग में आश्रमों की यह दृष्टि मन को छूती है.
भारत के बाह्य संसार (सत्ता संसार या सार्वजनिक जीवन) को जब देखता हूं, तो यहां सिर्फ प्रचार की भूख है. पहले धन खर्च कर प्रचार, फिर प्रचार की पूंजी से धनार्जन. राजनीति या उद्योग की दुनिया का यह फॉर्मूला या व्याकरण है. आध्यात्म के क्षेत्र में भी ऐसे ही लोगों की तादाद अधिक है. पर जिन आध्यात्मिक संस्थाओं से अपना निजी सरोकार रहा है, या है, वे प्रचार से उतनी ही दूर. और इन संस्थाओं में किस कोटि के लोग हैं? फिलहाल योगदा के बारे में ही जान लें. उनके कुछ स्वामियों के बारे में थोड़ी-बहुत सूचनाएं हैं. हालांकि ये संन्यासी अपना अतीत नहीं बताते. कहते हैं संन्यासियों का अतीत तो खत्म. वह दफन संसार है.
फिर भी योगदा के एक स्वामी भाभा एटॉमिक सेंटर में चोटी के वैज्ञानिक रहे हैं. दूसरे पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम की वैज्ञानिक टीम में से एक. मिसाइल प्रक्षेपण के लिए उनका चयन हुआ. पर मन में वैराग्य उपजा. वे संन्यासी बन गये. वह न्यूक्लीयर फिजिक्स के उच्च कोटि के प्रोफेसर रह चुके हैं. इलेक्‍ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग के टॉपर और विशिष्ट प्रोफेसर रह चुके हैं. एक दूसरे पहुंचे हुए डॉक्टर हैं. अनेक अन्य हैं. इसी तरह प्रतिभा संपन्न. पर इनके बारे में बताना मकसद नहीं है. ये बताते भी नहीं.
इस तरह के आयोजनों को खर्च कहां से आता है? स्वत:स्फूर्त, आपसी सहयोग या दान से. यह भी कहना मकसद नहीं है. मूल बात है कि कैसे दो हजार लोग एक साथ रहते हैं. लगभग एक हफ्ते तक. कैसी सुंदर व्यवस्था. इसी अराजक समाज के बीच. आश्रम में कागज का एक टुकड़ा नहीं. कोई गंदगी नहीं. मनमोहने वाली सफाई. जगह-जगह कूड़ेदान रखे हैं.
पीने के पानी का प्रबंध. सब कुछ व्यवस्थित. इससे भी अधिक, सबका आचरण स्तब्ध करने वाला. उच्च कोटि का आत्म-अनुशासन और सजगता. खाने के बाद जरा भी गंदगी नहीं. पंक्तिबद्ध होकर धैर्य के साथ चुपचाप अपनी बारी की प्रतीक्षा करते लोग. अनेक महत्वपूर्ण पृष्ठभूमियों के साधक.
चुपचाप अपने काम में मगन. किसी में महत्व पाने या पहले होने की बेचैनी या स्पर्धा नहीं. न पद का अहंकार. न व्यक्तित्व का बोझ. न अहंकारों की गठरी. स्त्री-पुरुष सभी साथ-साथ. बड़े पैमाने पर युवाओं की तादाद. एक साधक ने कहा हमारे कमरे में 18 लोग हैं. इसके पहले सभी एक दूसरे से अपरिचित. कोई आंध्र का तो कोई महाराष्ट्र का, कोई पश्चिम बंगाल का तो कोई जम्मू-कश्मीर का. पर सबके बीच प्रेम का रिश्ता. परिवार जैसा बंधन.
एक-एक चीज की मुकम्मल व्यवस्था. और यह सारी व्यवस्था भारत के अराजक समाज के बीच हो रही है. झारखंड जैसे राज्य में. इन आयोजकों के पास न धनबल है, न मानव संख्या. न पुलिस-प्रशासन. न सरकार जैसे संसाधन. पर प्रबंधन का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण.
वर्षों से इन केंद्रों में घूमता हूं. पर इनके अनुशासन, पवित्रता, सात्विकता, प्रेम, सौहार्द का राज नहीं जान पाया. यह शायद मनुष्य के उच्च कोटि के भावों का परिणाम हैं. इन आश्रमों के केंद्र में तप है, साधना है, तपस्या है. छल-प्रपंच नहीं. सात्विकता-पवित्रता है.
शायद इसी कारण इनके माहौल में एक जादू है. ये केंद्र हमारे जनजीवन में रोशनी के प्रतीक हैं. पर क्या हम रोशनी केंद्रों से कुछ सीखने-समझने को तैयार हैं? इन रोशनी केंद्रों के बाहर, भारत के जनजीवन में पसरा अंधकार देखिए. तब इनका महत्व समझ में आयेगा. पहले की राजनीति में अनेक संन्यासी प्रवृत्ति के लोग थे.
या अनेक राजनेता, संघर्ष और सिद्धांत की राजनीति करने के बाद संन्यासी हो गये. संन्यास, एक उच्च कोटि का भाव है. कीचड़ में कमल जैसा रहने का भाव. इसलिए पुराने अधिसंख्य नेता फकीर रह गये. अपने पद-प्रभाव को धनकुबेर बनने का माध्यम नहीं बनाया. उनके चरित्र भी बेदाग रहे. पहले इस भाव के लोग भी राजनीति में थे. आज हालात पलट गये हैं. आज भोगी (अपवाद छोड़ कर) राजनीति में हैं.
घोर अंधकार भी
रोशनी का पक्ष आपने जाना. पर भारत का सार्वजनिक जीवन घोर अंधकार में है. भ्रष्टाचार, अनैतिकता, स्वार्थ वगैरह के अंधकार में डूबा. रोज ही अनेक खबरें आती हैं, जो समाज-देश की सेहत बताती हैं. हाल की कुछेक खबरों की सुर्खियां भर जान लें.
– उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्रीजी अखिलेश यादव ने अपने पिता मुलायम सिंह के 74वें जन्मदिन पर किसानों का 1650 करोड़ रुपये का कर्ज माफ किया.
– मुलायम सिंह के दूसरे बेटे प्रतीक के समर्थकों ने उन्हें संसद में भेजने के लिए प्रदर्शन किया. उल्लेखनीय है कि मुलायम सिंह परिवार के आधे दर्जन सदस्य (कुल छह लोग) संसद-विधानसभा में हैं. मुख्यमंत्री, मंत्री, सांसद वगैरह. बेटे प्रतीक संसद पहुंचनेवाले सातवें सदस्य होंगे, मुलायम परिवार के.
– केरल सरकार का नारा है, ‘ गाड्स ओन कंट्री’ (भगवान का अपना देश). पर्यटकों के लिए. पढ़ा-लिखा शिक्षित प्रदेश. औरतों और बच्चियों के प्रति क्रू रता की खबरें जो केरल से आ रही हैं, वे समाज के लिए सबसे बुरी खबरें हैं.
पिता अपनी ही बेटियों से बलात्कार कर रहे हैं. हाल में ऐसी दो घटनाएं हुई हैं जिनसे पूरे केरल में पुरुष मानस को लेकर नयी बहस-चिंता है. इससे पहले भी ऐसी घटना हुई है. शराबखोरी और अन्य तरह के बलात्कार की खबरें अलग हैं.
– बोकारों से खबर है कि एटीएम तोड़ कर चोरी करनेवालों ने पुलिस के अफसरों को ही पीटा.
– पोंटी चड्ढा की मौत फार्म हाउस के झगड़े में हुई. खबर यह है कि महानगरों में स्थित फार्म हाउस, धनकुबेरों की पार्टियों के मुख्य अड्डे हैं. एक -एक पार्टी पर एक रात में दो करोड़ तक खर्च होते हैं. सिर्फ दिल्ली में 3000 से अधिक फार्म हाउस हैं.
इन पांच खबरों (नवंबर के तीसरे सप्ताह में राष्ट्रीय अखबारों में छपी) में हमने सरकारी भ्रष्टाचार, व्यवस्थागत विफलता या संसदीय जनतंत्र की दुर्दशा की खबरें नहीं डाली हैं. हमारा मानस और सामाजिक जीवन कैसा है, इन्हीं से जुड़ी ये खबरें हैं. गौर करिए ये खबरें देश के अलग-अलग प्रांतों से हैं. पर चौतरफा हालत कमोबेश समान है. ऐसी खबरों-सूचनाओं पर अब समाज में बहस नहीं होती.
एक बेटा अपने बाप के जन्मदिन पर सरकारी कोष लुटाये, यह सवाल है या नहीं? जो मुलायम सिंह लोहिया को अपना गुरु मानते हैं, परिवारवाद के खिलाफ राजनीति करते रहे, अब पूरी राजनीतिक सत्ता अपने परिवार को ही सौंपना चाहते हैं? चोर-डकैत, सुरक्षा करनेवाली पुलिस की पिटाई कर रहे हैं? जिस देश में करोड़ों लोग गरीबी से त्रस्त हैं. भूखे हैं. वहां एक रात की पार्टियों में दो-दो करोड़ खर्च होते हैं? ऐसे सवालों पर चौतरफा चुप्पी ही असल अंधेरा है.
दिनांक : 02.12.12

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