वेदांत की शिक्षा

हमें संसार का त्याग करना चाहिए और संसार त्यागने के बाद क्या रहता है..ब्रह्म. इसका अर्थ क्या हुआ? इसका अर्थ यह नहीं कि तुम अपनी स्त्रियों को अपने रास्ते जाने के लिए छोड़ दो, वरन् यह कि तुम उन्हें रखो, पर उन्हें परमात्मामय देखो. अपने बच्चों को त्याग दो. इसका अर्थ क्या हुआ? अपने बच्चों […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 21, 2015 1:19 AM

हमें संसार का त्याग करना चाहिए और संसार त्यागने के बाद क्या रहता है..ब्रह्म. इसका अर्थ क्या हुआ? इसका अर्थ यह नहीं कि तुम अपनी स्त्रियों को अपने रास्ते जाने के लिए छोड़ दो, वरन् यह कि तुम उन्हें रखो, पर उन्हें परमात्मामय देखो. अपने बच्चों को त्याग दो.

इसका अर्थ क्या हुआ? अपने बच्चों को लेकर गली में फेंक दो? कदापि नहीं. यह तो धर्म नहीं, प्रत्युत घोर अमानुषिकता है. उसका अर्थ यह है कि बच्चों में भी परमात्मा को देखो. इसी प्रकार सब वस्तुओं में उसे देखो. जीते, मरते, सुख में, दुख में, संपत्ति में, विपत्ति में, सदैव संसार को ब्रह्ममय देखो. आंखें खोलो और उस ब्रह्म को पहचानो-यही वेदांत की शिक्षा है.

तुम्हारा अनुभव अधूरा था और बुद्धि शुद्ध थी, अत: अपनी कमजोरियों से कल्पित संसार को त्याग दो. जिस संसार के विषय में तुम इतने दिनों तक सोचते रहे हो और जिसका तुम्हें इतना मोह है, वह तुम्हारी कल्पना का संसार है. उसे त्याग दो. आंखें खोलो और देखो कि तुम्हारा संसार कभी था ही नहीं, वह केवल माया था. जो वास्तव में था वह ब्रह्म था.

बच्चों में, स्त्री में, पति में, अच्छाई में, बुराई में, हत्यारे में, पापी में, जीवन में, मृत्यु में- सबमें वही एक ब्रह्म है. यह भी एक विकट उपाय है, पर इसी मुख्य सिद्धांत को वेदांत सिद्ध करना चाहता है, उसकी सत्यता दिखाना चाहता है, उसकी शिक्षा देना चाहता है, उसका प्रचार करना चाहता है.

स्वामी विवेकानंद

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