मूल्यों की क्रांति

हमारा संसार चाहे जितना छोटा हो, लेकिन अगर हम उस छोटे-से संसार में अपने संबंधों में बदलाव ला सकते हैं, तो वह परिवर्तन एक ऐसी तरंग की तरह होगा, जो निरंतर बाहर की ओर फैलता चला जाता है. मेरे विचार से इस विषय को समझना आवश्यक है कि विश्व हमारा संबंध ही है, चाहे वह […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 28, 2015 11:17 PM

हमारा संसार चाहे जितना छोटा हो, लेकिन अगर हम उस छोटे-से संसार में अपने संबंधों में बदलाव ला सकते हैं, तो वह परिवर्तन एक ऐसी तरंग की तरह होगा, जो निरंतर बाहर की ओर फैलता चला जाता है. मेरे विचार से इस विषय को समझना आवश्यक है कि विश्व हमारा संबंध ही है, चाहे वह संबंध कितना ही सीमित क्यों न हो; और यदि उस संबध में हम परिवर्तन ला सकते हैं, सतही नहीं, एक आमूल परिवर्तन, तो इस सक्रिय रूप में विश्व को बदलना शुरू कर देंगे. वास्तविक क्रांति दक्षिणपंथी या वामपंथी जैसे किसी विशेष प्रारूप के अनुसार नहीं होती.

वास्तविक क्रांति तो मूल्यों की क्रांति है, वह एक ऐसी क्रांति है, जो ऐंद्रिक मूल्यों से उन मूल्यों की ओर अग्रसर होती है, जो न ऐंद्रीक होती है, न ही परिवेशजनित. आमूल क्रांति, रूपांतरण या नवजीवन का संचार करनेवाले सही मूल्यों को खोज निकालने के लिए यह अनिवार्य है कि व्यक्ति स्वयं को समझे. स्वबोध प्रज्ञा का और इस प्रकार आमूल परिवर्तन या नवजीवन का आरंभ है. अपने आपको समझने की मंशा जरूरी है, लेकिन यहीं मुश्किल आ जाती है.

हालांकि, हममें से अधिकतर लोग असंतुष्ट हैं और हम तुरंत परिवर्तन लाना चाहते हैं; लेकिन हमारा असंतोष कुछ परिणामों की उपलब्धि तक ही सीमित होकर रह जाता है; असंतुष्ट होने के कारण या तो हम दूसरा काम खोजने लगते हैं या परिस्थितियों से हार मान लेते हैं.

जे कृष्णमूर्ति

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