अज्ञानवश मोहग्रस्तता

असुरों में काम कभी तृप्त नहीं होता. वे क्षणभंगुर वस्तुओं को स्वीकार करने के कारण सदैव चिंतामग्न रहते हैं. अत: वे यह नहीं कह पाते हैं कि वे गलत दिशा में जा रहे हैं. इस तरह वे अपना निजी ईश्वर निर्माण कर लेते हैं. अपने निजी मंत्र बना लेते हैं और तद्नुसार कीर्तन करते हैं. […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 7, 2015 11:48 PM

असुरों में काम कभी तृप्त नहीं होता. वे क्षणभंगुर वस्तुओं को स्वीकार करने के कारण सदैव चिंतामग्न रहते हैं. अत: वे यह नहीं कह पाते हैं कि वे गलत दिशा में जा रहे हैं. इस तरह वे अपना निजी ईश्वर निर्माण कर लेते हैं. अपने निजी मंत्र बना लेते हैं और तद्नुसार कीर्तन करते हैं.

इसका फल यह होता है कि वे दो वस्तुओं की ओर अधिकाधिक आकृष्ट होते हैं- कामभोग तथा संपत्ति संचय. वे मानते हैं कि इंद्रियों का भोग ही जीवन का चरम लक्ष्य है और वे आमरण इसी विचारधारा को धारण किये रहते हैं. वे मृत्यु के बाद जीवन में विश्वास नहीं करते. वे नहीं मानते कि मनुष्य को इस जगत में अपने कर्म के अनुसार विविध प्रकार के शरीर धारण करने पड़ते हैं.

उपनिषदों में कहा गया है- एक पक्षी कर्म करता हुआ टहनियों में लगे सुख-दुख रूपी फलों को भोग रहा है और दूसरा उसका साक्षी है. लेकिन आसुरी मनुष्य को न तो वैदिक शास्त्र का ज्ञान है और न कोई श्रद्धा है.

अतएव व इंद्रिय भोग के लिए कुछ भी करने के लिए अपने को स्वतंत्र मानता है. उसे परिणाम की परवाह नहीं रहती. आसुरी व्यक्ति सोचता है कि आज मेरे पास इतना धन है और अपनी योजनाओं से मैं और अधिक धन कमाऊंगा. मैं सभी वस्तुओं का स्वामी हूं. मैं भोक्ता हूं. मैं सिद्ध, शक्तिमान तथा सुखी हूं. मैं सबसे धनी व्यक्ति हूं. इस प्रकार ऐसे व्यक्ति अज्ञानवश मोहग्रस्त होते रहते हैं.

स्वामी प्रभुपाद

Next Article

Exit mobile version