अब गुलामी मंजूर नहीं
स्वतंत्रता की मेरी संकल्पना कोई संकुचित संकल्पना नहीं है. उसमें मनुष्य की अपने संपूर्ण ऐश्वर्य के साथ पूर्ण स्वतंत्रता समाविष्ट है. प्रत्येक व्यक्ति को अपनी प्रतिभा का उपयोग करने की पूरी-पूरी स्वतंत्रता होनी चाहिए और उसके पड़ोसियों को भी अपनी-अपनी प्रतिभाओं का उपयोग करने की वैसी ही स्वतंत्रता मिलनी चाहिए. किसी व्यक्ति को अपनी प्रतिभा […]
स्वतंत्रता की मेरी संकल्पना कोई संकुचित संकल्पना नहीं है. उसमें मनुष्य की अपने संपूर्ण ऐश्वर्य के साथ पूर्ण स्वतंत्रता समाविष्ट है. प्रत्येक व्यक्ति को अपनी प्रतिभा का उपयोग करने की पूरी-पूरी स्वतंत्रता होनी चाहिए और उसके पड़ोसियों को भी अपनी-अपनी प्रतिभाओं का उपयोग करने की वैसी ही स्वतंत्रता मिलनी चाहिए.
किसी व्यक्ति को अपनी प्रतिभा से होनेवाले लाभों के मनमाने उपयोग का अधिकार नहीं होना चाहिए. कोई अत्याचारी आज तक अपने शिकार के सहयोग के बिना अपने उद्देश्य में सफल नहीं हो सका है.
यह अवश्य है कि उसने यह सहयोग प्राय: बलपूर्वक प्राप्त किया है. अत्याचारी का प्रमुख शस्त्र आतंक होता है. निरंकुश से निरंकुश सरकार भी अपने शासितों की सहमति के बगैर चल नहीं सकती; यह जरूर है कि निरंकुश सरकार यह सहमति प्राय: बलप्रयोग के द्वारा प्राप्त करती है.
जब गुलाम यह संकल्प कर लेता है कि वह अब गुलामी नहीं करेगा, तो उसी समय उसकी जंजीरें टूट जाती हैं. वह आजाद हो जाता है और दूसरों को भी आजादी का रास्ता दिखा देता है. आजादी और गुलामी मानसिक स्थितियां हैं.
इसलिए पहली जरूरत इस बात की है कि हम स्वयं से कहें कि ‘मुझे अब गुलामी मंजूर नहीं. मैं आदेशों का ज्यों का त्यों पालन नहीं करूंगा, बल्कि उन आदेशों को मानने से इनकार कर दूंगा जो मेरे अंत:करण को स्वीकार्य नहीं हैं.’
महात्मा गांधी