रिश्तों की सत्यता

रिश्तों को समझने के लिए आवश्यक रूप से एक निष्क्रिय-अप्रतिरोधात्मक-धैर्य होना चाहिए, जो रिश्तों को नष्ट ना करता हो. इसके विपरीत ऐसा करने का धैर्य रिश्तों को और जीवंत और सार्थक बनाता है. तब, उस रिश्ते में वास्तविक लगाव की संभावना होती है; उसमें उष्णता होती है, निकटता का अहसास होता है, जो कि केवल […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 3, 2015 11:14 PM
रिश्तों को समझने के लिए आवश्यक रूप से एक निष्क्रिय-अप्रतिरोधात्मक-धैर्य होना चाहिए, जो रिश्तों को नष्ट ना करता हो.
इसके विपरीत ऐसा करने का धैर्य रिश्तों को और जीवंत और सार्थक बनाता है. तब, उस रिश्ते में वास्तविक लगाव की संभावना होती है; उसमें उष्णता होती है, निकटता का अहसास होता है, जो कि केवल निरी भावुकता और रोमांच नहीं होता.
यदि हम ऐसे रिश्ते तक पहुंच सकते हैं, या सारे अस्तित्व के साथ हम ऐसे ही रिश्ते में हैं, तो हमारी समस्या सहज ही हल हो जायेगी. चाहे वह संपत्ति की समस्या हो, चाहे वह किसी आधिपत्य की समस्या हो, क्योंकि हम वही हैं, जिन पर हम आधिपत्य चाहते हैं.
वह व्यक्ति जो धन पर आधिपत्य चाहता है, उसका जीवन धन ही है. ऐसा ही संकल्पनाओं-विचारों के साथ भी है. जब भी जहां पर भी आधिपत्यशाली होना चाहा जाता है, वहां रिश्ता नहीं होता.
लेकिन हममें से बहुत से लोग आधिपत्य चाहते हैं, क्योंकि हमें तभी लगता है कि हम कुछ हैं, यदि हमारा किसी चीज पर कब्जा ही ना हो, तो लगता ही नहीं कि हम कुछ हैं.
यदि हम अपने जीवन को फर्नीचर, संगीत, ज्ञान और यह और वह से नहीं भर लेते, तो हम अपने जीवन को, खुद को खोखले घोंघे सा अनुभव करते हैं.
यह खोखलापन बहुत ही शोर पैदा करता है, इस शोर को ही हम जीना कहते हैं, और यही है जिससे हम संतुष्ट भी रहते हैं.
जे कृष्णमूर्ति

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