कर्मफल की व्यवस्था

एक उद्यान में कई तरह के पौधे और फूल उगते हैं. इस भिन्नता से बगीचे की शोभा बढ़ती है. यही बात विचार उद्यान के संदर्भ में स्वीकार की जा सकती है. इसमें अनेक प्रयोग परीक्षणों के लिए गुंजाइश रहती है और सत्य को सीमाबद्ध कर देने से उत्पन्न अवरोध की हानि नहीं उठानी पड़ती. इस […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 26, 2015 2:18 AM
एक उद्यान में कई तरह के पौधे और फूल उगते हैं. इस भिन्नता से बगीचे की शोभा बढ़ती है. यही बात विचार उद्यान के संदर्भ में स्वीकार की जा सकती है. इसमें अनेक प्रयोग परीक्षणों के लिए गुंजाइश रहती है और सत्य को सीमाबद्ध कर देने से उत्पन्न अवरोध की हानि नहीं उठानी पड़ती. इस दृष्टिकोण के कारण नास्तिक लोगों के लिए भी भारतीय संस्कृति के अंग बने रहने की छूट है. भारतीय संस्कृति की दूसरी विशेषता है- कर्मफल की मान्यता.
पुनर्जन्म के सिद्धांत में जीवन को अवांछनीय माना गया है और मरण की उपमा वस्त्र परिवर्तन से दी गयी है. कर्मफल की मान्यता नैतिकता और सामाजिकता की रक्षा के लिए नितांत आवश्यक है. मनुष्य की चतुरता अद्भुत है. वह सामाजिक विरोध और राजदंड से बचने के अनेक हथकंडे अपना कर कुकर्मरत रह सकता है. ऐसी दशा में किसी सर्वज्ञ सर्वसमर्थ सत्ता की कर्मफल व्यवस्था का अंकुश ही उसे सदाचरण की मर्यादा में बांधे रह सकता है.
परलोक की, स्वर्ग-नरक की, पुनर्जन्म की मान्यता समझाती है कि आज नहीं तो कल, इस जन्म में नहीं तो अगले जन्म में, कर्म का फल भोगना पड़ेगा. कुकर्म का लाभ उठानेवाले यह न सोचें कि उनकी चतुरता सदा काम देती रहेगी और वे पाप से लाभान्वित होते रहेंगे.
पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य

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