कृष्ण का व्यक्तिगत तेज

अपनी निजी विधि का निर्माण करके कोई स्वरूपसिद्ध नहीं बन सकता है. गीता का कथन है- धर्मपथ का निर्माण स्वयं भगवान ने किया है. अतएव मनोधर्म या शुष्क तर्क से सही पद प्राप्त नहीं हो सकता है. न ही ज्ञानग्रंथों के स्वतंत्र अध्ययन से कोई आध्यात्मिक जीवन में उन्नति कर सकता है. ज्ञान प्राप्ति के […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 27, 2015 12:46 AM
अपनी निजी विधि का निर्माण करके कोई स्वरूपसिद्ध नहीं बन सकता है. गीता का कथन है- धर्मपथ का निर्माण स्वयं भगवान ने किया है. अतएव मनोधर्म या शुष्क तर्क से सही पद प्राप्त नहीं हो सकता है. न ही ज्ञानग्रंथों के स्वतंत्र अध्ययन से कोई आध्यात्मिक जीवन में उन्नति कर सकता है. ज्ञान प्राप्ति के लिए उसे प्रामाणिक गुरु की शरण में जाना ही होगा.
गुरु की प्रसन्नता ही आध्यात्मिक जीवन की प्रगति का रहस्य है. जिज्ञासा और विनीत भाव के मेल से आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त होता है. बिना विनीत भाव तथा सेवा के विद्वान गुरु से की गयी जिज्ञासाएं प्रभावपूर्ण नहीं होंगी. प्रामाणिक गुरु स्वभाव से शिष्य के प्रति दयालु होता है. अत: यदि शिष्य विनीत हो और सेवा में तत्पर रहे, तो ज्ञान और जिज्ञासा का विनिमय पूर्ण हो जाता है.
स्वरूपसिद्ध व्यक्ति से ज्ञान प्राप्त होने का परिणाम यह होता है कि यह पता चल जाता है कि सारे जीव भगवान श्रीकृष्ण के भिन्न अंश हैं. कुछ लोग सोचते हैं कि हमें कृष्ण से क्या लेना-देना है. वे तो केवल महान ऐतिहासिक पुरुष हैं और परब्रह्म तो निराकार है. यह निराकार ब्रह्म कृष्ण का व्यक्तिगत तेज है. कृष्ण भगवान के रूप में प्रत्येक वस्तु के कारण हैं.
– स्वामी प्रभुपाद

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