भगवान कृष्ण असीम तथा ससीम को नियंत्रित करते हैं, किंतु वे इस जगत से विलग रहते हैं. वे एक साथ ससीम तथा असीम को वश में रख सकते हैं. तो वे भी उनसे पृथक रहते हैं.
यद्यपि अज्ञानी लोग सोच भी नहीं पाते कि मनुष्य रूप में उत्पन्न होकर कृष्ण किस तरह असीम तथा ससीम को वश में कर सकते हैं, किंतु जो शुद्धभक्त हैं, वे ही इसे स्वीकार करते हैं, क्योंकि उन्हें पता है कि कृष्ण भगवान हैं. अत: वे पूर्णतया उनकी शरण में जाते हैं और कृष्ण भावनामृत में रह कर कृष्ण की भक्ति में अपने को रत रखते हैं.
सगुणवादियों तथा निर्गुणवादियों में भगवान के मनुष्य रूप में प्रकट होने को लेकर काफी मतभेद हैं. किंतु यदि हम भगवद्गीता तथा श्रीमद्भागवद जैसे प्रामाणिक ग्रंथों का अनुशीलन कृष्णतत्व समझने के लिए करें, तो समझ सकते हैं कि कृष्ण श्रीभगवान हैं. यद्यपि वे इस धराधाम में सामान्य व्यक्ति की भांति प्रकट हुए थे, किंतु वे सामान्य व्यक्ति नहीं हैं.
श्रीमद्भागवद में शौनक आदि मुनियों ने सूत गोस्वामी से कृष्ण के कार्यकलापों के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा- भगवान कृष्ण ने बलराम के साथ मनुष्य की भांति क्रीड़ा की और इस तरह प्रच्छन्न रूप में उन्होंने अनेक अति मानवीय कार्य किये.
– स्वामी प्रभुपाद