राग और द्वेष तुम्हारे हृदय को कठोर बना देते हैं. केवल व्यवहार विनम्र होने से कोई लाभ नहीं. तुम्हारे व्यवहार में रूखापन हो सकता है, पर दिल में कठोरता नहीं होनी चाहिए. व्यवहार के रूखेपन को सहा जा सकता है, परंतु दिल की कठोरता को नहीं. दुनिया केवल तुम्हारा बाहरी व्यवहार देखती है, पर ईश्वर को परवाह नहीं कि तुम बाहर से कैसे हो! वे केवल तुम्हारे अंदर देखते हैं. कभी भी अपने दिल में थोड़ा सा भी राग या द्वेष का अंश मत रहने दो.
इसे तो गुलाब के फूल की तरह कोमल और सुगंधित बना रहने दो. राग-द्वेष तुम्हारे हृदय को कठोर बनाता है. इस कठोरता को निर्मल होने में, खत्म होने में बहुत समय लगता है. यह एक ऐसा जाल है, जो तुम्हें अनमोल खजाने से दूर रखता है. इस भौतिक संसार में कुछ भी तुम्हें तृप्ति नहीं दे सकता. बाहरी दुनिया में संतुष्टि खोजनेवाला मन अतृप्त हो जाता है और यह अतृप्ति बढ़ती जाती है. शिकायतें तथा नकारात्मक स्वभाव दिमाग को कठोर बनाने लगते हैं और प्रभामंडल को ढक पूरे वातावरण में नकारात्मक शक्ति का विष फैला देते हैं. जब नकारात्मकता की अति हो जाती है, तो यह अत्यधिक फूले हुए गुब्बारे की तरह फूट जाती है और वापस ईश्वर के पास आ जाती है.
– श्री श्री रविशंकर