मुक्ति के लिए संघर्ष
एक परमाणु से लेकर मनुष्य तक, जड़ तत्व के अचेतन प्राणहीन कण से लेकर इस पृथ्वी की सर्वोच्चता-मानवता तक, जो कुछ हम इस िवश्व में देखते हैं, वे सब मुिक्त के िलए संघर्ष कर रहे हैं. वास्तव में यह समग्र िवश्व इस मुिक्त के िलए संघर्ष का ही परिणम है. हर िमश्रण में प्रत्येक अणु […]
एक परमाणु से लेकर मनुष्य तक, जड़ तत्व के अचेतन प्राणहीन कण से लेकर इस पृथ्वी की सर्वोच्चता-मानवता तक, जो कुछ हम इस िवश्व में देखते हैं, वे सब मुिक्त के िलए संघर्ष कर रहे हैं. वास्तव में यह समग्र िवश्व इस मुिक्त के िलए संघर्ष का ही परिणम है.
हर िमश्रण में प्रत्येक अणु दूसरे परमाणुओं से पृथक होकर अपने स्वतंत्र पथ पर जाने की चेष्टा कर रहा है, पर दूसरे उसे आबद्ध करके रखे हुए हैं. हमारी पृथ्वी सूर्य से दूर भागने की चेष्टा कर रही है तथा चंद्रमा पृथ्वी से. प्रत्येक वस्तु में अनंत िवस्तार की प्रवृित्त है. इस िवश्व में हम जो कुछ देखते हैं, उस सबका मूल आधार मुिक्त-लाभ के िलए संघर्ष ही है.
जब कार्य-िवधि अनुिचत होती है, तो उसे हम अशुभ कहते हैं और जब उसकी अिभव्यक्ति उिचत तथा उच्च होती है, तो उसे शुभ कहते हैं. परंतु दोनों दशाओं में प्रेरणा एक ही होती है और वह है मुिक्त के िलए संघर्ष. िनस्वार्थ सेवा ही धर्म है ओर बाह्य िवधि-अनुष्ठान आिद केवल पागलपन हैं, यहां तक िक अपनी मुिक्त की अिभलाषा करना भी अनुिचत है. मुिक्त केवल उसके िलए है, जो दूसरों के िलए सर्वस्व त्याग देता है, परंतु वे लोग हैं, जो मेरी मुिक्त की अहर्निश रट लगाये रहते हैं.
– स्वामी विवेकानंद