बुद्धपुरुषों संग ध्यान

यदि किसी बुद्धपुरुष के वचनों को पूरा-पूरा समझना हो, तो उसे ध्यान के द्वारा ही समझा जा सकता है. हालांकि, ध्यान के बिना भी उन वचनों के अर्थ की थोड़ी-थोड़ी झलक मिल सकती है. थोड़ी-थोड़ी भनक पड़ सकती है, बिना ध्यान के भी. अगर यह भनक न पड़ती होती, तो फिर तुम चलोगे ही कैसे! […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 15, 2015 6:51 AM

यदि किसी बुद्धपुरुष के वचनों को पूरा-पूरा समझना हो, तो उसे ध्यान के द्वारा ही समझा जा सकता है. हालांकि, ध्यान के बिना भी उन वचनों के अर्थ की थोड़ी-थोड़ी झलक मिल सकती है.

थोड़ी-थोड़ी भनक पड़ सकती है, बिना ध्यान के भी. अगर यह भनक न पड़ती होती, तो फिर तुम चलोगे ही कैसे! तब तो तुम कहोगे, जब ध्यान होगा, तभी समझ में आयेगा, और जब तक समझ में नहीं आया, तब तक चलें कैसे? और जब तक चलोगे नहीं, तब तक ध्यान कैसे होगा! तब तो तुम एक बड़े चक्कर में पड़ जाओगे, एक दुष्चक्र में पड़ जाओगे. तो दो बातें ख्याल रखना. न तो यही बात सच होती है कि जो बुद्धपुरुष कहते हैं, वह तुमने सिर्फ सुन लिया और समझ में आ जायेगा. नहीं, अगर इतने से ही समझ में आ जायेगा, तो फिर ध्यान की कोई जरूरत ही न रहेगी.

और न ही दूसरी बात सच है कि जब ध्यान होगा, तभी कुछ समझ में आयेगा, क्योंकि अगर ध्यान होगा, तभी समझ में आयेगा, तब तो तुम ध्यान भी कैसे करोगे? बुद्धपुरुषों में कुछ रस आने लगे, तभी तो ध्यान में लगोगे न! तो जब तुम भी उन जैसे ही हो जाओगे, तभी पूरा अनुभव होगा. लेकिन, अभी थोड़ी भनक तो पड़ ही सकती है.

– आचार्य रजनीश ओशो

Next Article

Exit mobile version