‘जो है’ का वास्तविक अवलोकन

जब हम आलोचना करते हैं या किसी चीज के बारे में किसी तरह के फैसले करने लगते हैं, तो हम उसे स्पष्ट रूप से नहीं देख पाते, ना ही उस समय जब हमारा दिल दिमाग बिना रुके बक-बक में ही लगा रहता है. तब हम ‘जो है’ का वास्तविक अवलोकन नहीं कर पाते, हम अपने […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 15, 2016 4:06 AM

जब हम आलोचना करते हैं या किसी चीज के बारे में किसी तरह के फैसले करने लगते हैं, तो हम उसे स्पष्ट रूप से नहीं देख पाते, ना ही उस समय जब हमारा दिल दिमाग बिना रुके बक-बक में ही लगा रहता है. तब हम ‘जो है’ का वास्तविक अवलोकन नहीं कर पाते, हम अपने बारे में अपने पूर्वानुमान ही देख पाते हैं, जो अपने बारे में स्वयं हमने ही बनाये हैं. हममें से प्रत्येक ने अपने बारे में एक छवि बना रखी है कि हम क्या सोचते हैं या हमें क्या होना है और यह छवि ही हमें हमारी वास्तविकता के दर्शनों से परे रखता है.

किसी चीज को सहज रूप से ज्यों-का-त्यों देखना संसार में कठिन चीजों में से एक है, क्योंकि हमारे दिल-दिमाग बहुत ही जटिल हैं. यहां मेरा आशय उस सहजता से है, जो किसी चीज को सीधे-सीधे वैसा ही देख पाती है, बिना किसी भय के. जब हम झूठे बोलें, तो उसे छुपायें नहीं और ना ही उससे दूर भाग जायें. अपने को समझने के अनुक्रम में हमें अत्यंत विनम्रता की आवश्यकता है. जब आप कुछ उपलब्ध करते हैं, तो आप अपनी सहजता और विनम्रता के गुणों पर विराम लगा देते हैं. जब आप किसी निर्णय पर पहुंचते हैं, तो आप खत्म हो चुके होते हैं.

जे कृष्णमूर्ति

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