फूलों की तरह हैं उपदेश

उपदेश फूलों की तरह हैं, वे बोझ नहीं होते. नानक एक गांव में आकर ठहरे. गांव बड़े फकीरों का गांव था, सूफियों की बस्ती थी. सूफियों के प्रधान ने एक कटोरे में दूध भर कर भेजा. कटोरा पूरा भरा था. नानक बैठे थे गांव के बाहर एक कुएं के पाट पर. मरदाना और बाला गीत […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 19, 2016 6:31 AM

उपदेश फूलों की तरह हैं, वे बोझ नहीं होते. नानक एक गांव में आकर ठहरे. गांव बड़े फकीरों का गांव था, सूफियों की बस्ती थी. सूफियों के प्रधान ने एक कटोरे में दूध भर कर भेजा. कटोरा पूरा भरा था. नानक बैठे थे गांव के बाहर एक कुएं के पाट पर. मरदाना और बाला गीत गा रहे थे.

नानक सुबह के ध्यान में थे. कटोरा भर कर दूध आया तो बाला और मरदाना ने समझा कि फकीर ने स्वागत के लिए दूध भेजा है. लेकिन, नानक ने पास की झाड़ी से एक फूल तोड़ा, दूध के कटोरे में रख दिया. फूल ऊपर तिर गया. मरदाना और बाला ने कहा, यह आपने क्या किया? यह तो नाश्ते के लिए दूध आया था. नानक ने कहा, रुको, सांझ तक समझोगे. सांझ को वह फकीर नानक के चरणों में आ गया.

उसने चरण छुए और कहा कि स्वागत है आपका! तब मरदाना और बाला कहने लगे, हमें अब अर्थ खोल कर कहें! तो नानक ने कहा, दूध का कटोरा पूरा भर कर भेजा गया था कि अब यहां और फकीरों कि जरूरत नहीं है, आप कहीं और जाएं. तो मैंने फूल रख कर उस पर भेज दिया कि मैं तो एक फूल की भांति हूं, कोई जगह न भरूंगा. उपदेश जब तुम्हें कोई संत देता है, तो तुम्हें भरता नहीं, तुम्हारे ऊपर फूल की तरह तिर जाता है.

– आचार्य रजनीश ओशो

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