संकल्प और इच्छा के बीच
दो विचारधाराएं हैं. एक के अनुसार, आप अपना लक्ष्य रखते हैं और उसके लिए काम करते हैं. दूसरी के अनुसार, इस विश्वास के साथ कि ईश्वर जो करेगा, आपकी बेहतरी के लिए होगा, आप सब कुछ ईश्वर पर समर्पण कर देते हैं. दोनों विचारधाराएं एक-दूसरे की विरोधी लगती हैं, पर ऐसा नहीं है. संकल्प या […]
दो विचारधाराएं हैं. एक के अनुसार, आप अपना लक्ष्य रखते हैं और उसके लिए काम करते हैं. दूसरी के अनुसार, इस विश्वास के साथ कि ईश्वर जो करेगा, आपकी बेहतरी के लिए होगा, आप सब कुछ ईश्वर पर समर्पण कर देते हैं. दोनों विचारधाराएं एक-दूसरे की विरोधी लगती हैं, पर ऐसा नहीं है. संकल्प या लक्ष्य रखना अच्छा है, पर 24 घंटे हम उसी के बारे में नहीं सोचते रहते. बिना किसी ज्वर के उसके लिए कार्यरत रहते हुए उसको ईश्वर पर छोड़ देते हैं.
दोनों विचारधाराओं के जोड़ से ही काम होगा. हमारे वेदों में इसको बड़ा सुंदर बताया गया है- संकल्प लेकर उसके लिए कार्यरत रहते हुए उसे ईश्वर पर छोड़ देते हैं- ‘मुझे यह चाहिए और आप मुझसे बेहतर जानते हैं मेरे लिए क्या श्रेष्ठ है’. कई बार आप जानते ही नहीं है आपको क्या चाहिए. अगर सच में जानते हैं, तो उसे पाना कोई मुश्किल नहीं है.
कई बार जब आप किसी वस्तु के लिए प्रयत्न करते हैं, तो पाते हैं कि आपको वह नहीं चाहिए. इसलिए संकल्प करने से पहले अपनी सजगता बढ़ाएं. इच्छा और संकल्प में क्या भेद है? जब संकल्प के साथ ज्वर जुड़ जाता है तो वह इच्छा है. बिना ज्वर की इच्छा संकल्प है. और फिर उसके लिए कार्यरत रहते हुए यह विश्वास कि, जो भी प्रकृति तुम्हें दे रही है वो तुम्हारे विकास के लिए ही है.
– श्री श्री रविशंकर