सच्ची प्रार्थना का अर्थ

प्रार्थना के भीतर जाकर कोई प्रार्थना के बाहर नहीं आ सकता. मंदिर के भीतर जाकर कोई मंदिर के बाहर नहीं आ सकता, अगर सही-सही मंदिर के भीतर गया हो. क्योंकि फिर वह जहां होगा वहीं मंदिर होगा. वह जो करेगा वही प्रार्थना होगी. फिर जो भी उसके जीवन में होगा, सब प्रार्थनापूर्ण होगा. मैं ऐसी […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 12, 2016 1:09 AM

प्रार्थना के भीतर जाकर कोई प्रार्थना के बाहर नहीं आ सकता. मंदिर के भीतर जाकर कोई मंदिर के बाहर नहीं आ सकता, अगर सही-सही मंदिर के भीतर गया हो. क्योंकि फिर वह जहां होगा वहीं मंदिर होगा. वह जो करेगा वही प्रार्थना होगी. फिर जो भी उसके जीवन में होगा, सब प्रार्थनापूर्ण होगा.

मैं ऐसी प्रार्थना की, ऐसे प्रेम की बात कर रहा हूं. मैं चाहता हूं कि जगत में प्रार्थना हो. प्रार्थना के नाम से चलनेवाले जितने थोथे बाह्य आडंबर हैं, चाहता हूं कि वे नष्ट हो जायें, ताकि प्रार्थना का जन्म हो सके. प्रार्थना बड़ी आंतरिक मनोदशा है.

जब वह हो, तो जीवन में दृष्टिकोण बड़ा दूसरा होगा. अगर वह न हो, तो लोभी, कामी, सब प्रार्थना करते हुए दिखाई पड़ेंगे. जो अपने लोभ के लिए प्रार्थना करेंगे कि परमात्मा प्रसन्न हो जाये, तो उन्हें परमात्मा से कोई मतलब नहीं है, उनकी जो मांग है, उन्हें उससे मतलब है.

अगर वह मिल जायेगी, तो वे मानेंगे कि परमात्मा है, अगर वह नहीं मिलेगी, वे कहेंगे कि पता नहीं परमात्मा है या नहीं! अगर दस बार मांगा और फिर प्रार्थना पूरी न हुई, तो उन्हें परमात्मा पर संदेह हो जायेगा. यानी उनके लिए परमात्मा जो है, वह उन वस्तुओं से कम मूल्य का है, जिनको वे मांग रहे हैं.

-आचार्य रजनीश ओशो

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