जब तुम किसी प्रतीक, काल व्यक्ति या कार्य को पवित्र मानते हो, तब तुम्हारा ध्यान अविभाजित और परिपूर्ण होता है. जब सभी चीजें सामान्य और एक जैसी हो रही होती हैं, तब तुम असजगता और जड़ता की ओर प्रवृत्त हो जाते हो और जैसे ही तुम किसी चीज को पवित्रता की दृष्टि से देखते हो, तुम्हारी जड़ता लुप्त हो जाती है. तुम फिर सजीव हो उठते हो. जब तुम अपने संपूर्ण मन और आत्मा को पवित्र कार्य में लगा देते हो, जब तुम्हारा हर कार्य पवित्र होने लगता है, तो तुम ईश्वर के साथ एक हो जाते हो. तब तुम्हारे जीवन का हर मिनट, हर एक जगह, हर कार्य पवित्र होते हैं और जिन व्यक्तियों से तुम मिलते हो.
सोचो, एक ही कार्य करते रहने से उसकी पवित्रता क्यों नष्ट हो जाती है? ऐसा तभी होता है, जब तुम्हारी स्मृति तुम्हारी चेतना को आच्छादित कर देती है और तुम अपनी संवेदनशीलता खो देते हो. कुछ प्रतीक स्थान, काल और लोगों के प्रति पवित्र भावना होना अच्छा है, जिससे तुम सजग और सजीव रहो, परंतु अंत में तुम्हें इसके परे जाकर अनुभव करना है कि संपूर्ण सृष्टि और तुम्हारा संपूर्ण जीवन पवित्र है. देवपुरुष के लिए संपूर्ण सृष्टि इसके सभी प्रतीकों, स्थानों और मनुष्यों के साथ हर समय पवित्र है.
– श्री श्री रविशंकर