चैतन्यचरितामृत में शुद्धभक्त को निष्काम कहा गया है. शुद्धभक्त किसी भी वस्तु की इच्छा नहीं करता. उसे ही पूर्ण शांति का लाभ होता है. उन्हें नहीं जो स्वार्थ में लगे रहते हैं. एक ओर जहां ज्ञानयोगी, कर्मयोगी या हठयोगी का अपना-अपना स्वार्थ रहता है, वहीं पूर्णभक्त में भगवान को प्रसन्न करने के अतिरिक्त अन्य कोई इच्छा नहीं होती.
अत: भगवान कहते हैं कि जो एकनिष्ठ भाव से उनकी भक्त में लगा रहता है उसे वे सरलता से प्राप्त होते हैं. शुद्धभक्त सदैव कृष्ण के विभिन्न रूपों में से किसी एक की भक्ति में लगा रहता है. कृष्ण के अनेक स्वांश तथा अवतार हैं, जिनमें से भक्त किसी एक रूप को चुन कर उसकी प्रेमाभक्ति में मन को स्थिर कर सकता है.
ऐसे भक्त को उन अनेक समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ता, जो अन्य योग के अभ्यासकर्ताओं को झेलनी पड़ती है. भक्तियोग अत्यंत सरल शुद्ध तथा सुगम है. इसका शुभारंभ हरेकृष्ण जप से किया जा सकता है. भगवान सब पर कृपालु हैं, किंतु जो अननय भाव से उनकी सेवा करते है, वे उनके ऊपर विशेष कृपालु रहते हैं. जिसने पूरी तह से भगवान की शरण ले ली है और जो उनकी भक्ति में लगा हुआ है, वही भगवान को यथारूप में समझ सकता है.
– स्वामी प्रभुपाद