19.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

धर्म के ठीहे पर

मैंने पिता को एक बार अपने साथ घटित घटना का उल्लेख करते हुए सुना था़ वे उद्विग्न मन से बोल रहे थे, यह चालीस साल पहले की बात है़ मैं उन दिनों एक पहाड़ के पास बसे अल्पसंख्यक गांव के स्कूल में शिक्षक था. मुझसे स्कूल का अध्यक्ष हर पूर्णिमा की रात एक सवाल करता […]

मैंने पिता को एक बार अपने साथ घटित घटना का उल्लेख करते हुए सुना था़ वे उद्विग्न मन से बोल रहे थे, यह चालीस साल पहले की बात है़ मैं उन दिनों एक पहाड़ के पास बसे अल्पसंख्यक गांव के स्कूल में शिक्षक था.
मुझसे स्कूल का अध्यक्ष हर पूर्णिमा की रात एक सवाल करता था. वह अनपढ़ था. पर था कर्मठ पुरुष. दिन-रात अपने आॅयल मिल में तेल पेरता था. उसने पहली बार मुझसे पूछा था, वह कौन-सा भाव है, जो इच्छित वस्तु के नहीं मिलने के बाद भी तुम्हें लगातार जीने की प्रेरणा देता है?
दूसरी बार उसने पूछा, वह कौन-सा भाव है, जो तुम्हारे अंदर लगाव तो पैदा करता पर कहता है, तुम अभी के अभी मर जाओ? तीसरी बार उसने पूछा, वह कौन-सा भाव है जो बाड़े में रखी मुर्गियों के अंडे खाता है और चीख-चीख कर कहता है कि मैं तुम्हारी रक्षा कर रहा हूं? मैं किसी सवाल का जवाब नहीं दे पाया. उसने बताया भी नहीं. डेढ़ साल बाद एक वाकया हुआ. हेडमास्टर स्कूल के ढेर सारे पैसे खा गया. लोगों ने पीटा. वह हिंदू था. उसने धर्म का सवाल खड़ा कर दिया, दंगे की स्थिति पैदा कर दी. मैंने बोरिया-बिस्तर समेट लिया.
पर अध्यक्ष ने मुझे भागते हुए पकड़ लिया. कहा, जवाब लेके जा मरदूद, वरना पागल हो कर मरेगा़ देख वे भगोड़े, जो तुमसे जीने की अहद करवाये, वह भाव प्रेम है. जो तुम्हें मार डालने को तत्पर दिखे, वह भाव आसक्ति है और देख वे मुर्गीजान, जो भाव तुम्हारे अंडे खाये और तुम्हारी जान बचाने की दुहाई दे, वह आज का तथाकथित धर्म है़
दस साल हो गये इसे सुने. दिखाई बहुत कुछ दिया दुनिया में. कहीं दिखा कि किसी राजनैतिक पार्टी ने अपने को सत्ता पर काबिज करने के लिए धर्म का इस्तमाल कर लिया. कहीं कोई आदमी दिखा, जिसने अपना चेहरा दागदार होने से बचाने के लिए धर्म को ढाल की तरह आगे रख लिया और सामने खड़ी भीड़ को उत्तेजित कर दिया़ साम्राज्य बनाते बाबा दिखे कहीं, तो कहीं नौलखा मंदिर बना कर चढ़ावा खाता व्यापारी दिखा़
बराबर सोचा इस पर. अनुभूतियों ने बराबर जताया अलग-अलग अंदाज! मन ने बताया, धर्म समय सापेक्ष अनुभूति है. इसी कारण मां को उपवास करते हुए देखा तो लगा, उपवास ही धर्म है.
उपवास के बाद जब लड्डू दिया मां ने, तो लगा- मिठाई ही धर्म है. मां को मूर्तियों के आगे शीश नवाते देखा, तो लगा- पत्थरों के आगे झुकना ही धर्म है. पर जब मां से अलग हुई, दूसरे शहर में रहने को विवश हुई और कभी मूर्तियों के आगे झुकी तो भाव-स्मृति में एक अहसास जागा, मां उन पलों में मेरे साथ आ खड़ी हुई और लगा, उनका साथ पाने की यह विलक्षण अनुभूति ही धर्म है!

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें