विस्मित होने का ज्ञान

विस्मय आध्यात्मिक उद्घाटन का आधार है. यह कितना अद्भुत है कि सृष्टि सर्वत्र आश्चर्यजनक वस्तुओं से भरी पड़ी है, लेकिन हम इन्हें अनदेखा कर देते हैं, तभी हम में जड़ता का उदय होने लगता है और सुस्ती भी आती है. तमस का कार्य शुरू हो जाता है, निष्क्रियता आने लगती है और अज्ञानता घर कर […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 8, 2016 1:20 AM

विस्मय आध्यात्मिक उद्घाटन का आधार है. यह कितना अद्भुत है कि सृष्टि सर्वत्र आश्चर्यजनक वस्तुओं से भरी पड़ी है, लेकिन हम इन्हें अनदेखा कर देते हैं, तभी हम में जड़ता का उदय होने लगता है और सुस्ती भी आती है. तमस का कार्य शुरू हो जाता है, निष्क्रियता आने लगती है और अज्ञानता घर कर लेती है.

जबकि विस्मय का बोध हम में जागरूकता लाता है, चमत्कार तुम्हें चौंका देता है. और यह झटका जागरूकता है, जब हम जागरूक होते हैं, तब हम देखते हैं कि सारी सृष्टि चमत्कारों से भरी पड़ी है. यह समग्र सृष्टि विस्मित होने के लिए, आश्चर्यचकित होने के लिए है, क्योंकि यह सब एक ही चेतना का आविर्भाव है. वह एक ही चेतना है, जो दीये के रूप में, प्रकाश के रूप में जलती है और जो प्राण वायु लेती है.

प्रकाश और जीवन में क्या अंतर है? प्रकाश को दीये के रूप में जलने के लिए प्राण वायु चाहिए, ठीक वैसे ही जीवन को भी. अगर तुम्हें एक कांच के कटघरे में रख दिया जाये, तो तुम्हारे भीतर जो जीवन है, वह बुझ जायेगा. उसी प्रकार, अगर तुम दीये को ग्लास से ढंक दो, जब तक उस में प्राण वायु है, वह चलता रहेगा, उसके बाद वह भी बुझ जायेगा. एक पशु के दृष्टिकोण से तुम्हारी भाषा उसके लिए कोई मायने नहीं रखती. उसके लिए तो गर्जना है.

अगर एक कुत्ता या बिल्ली तुम्हारी ओर देखें और अगर तुमने उन्हें लंबे समय से प्रशिक्षित नहीं किया है, तो समझेंगे कि तुम उन पर भौंक रहे हो, किसी अलग आवाज से, जिसका कोई अर्थ नहीं निकलता. हमारी भाषा, हमारी बुद्धि, हमारा मन कितना सीमित है, इसका दृष्टिकोण सीमित है. यह प्राण, यह जीवन-ऊर्जा हरेक पत्थर, हरेक पदार्थ में उपस्थित है. इस ग्रह पर कुछ भी निर्जीव नहीं है. हम सब जीवन के महासागर में बह रहे हैं.

हम में से हरेक एक ढांचा है, जीवन के महासागर में सूक्ष्म से लेकर महामनस्क पदार्थ तक. जीवन-ढांचा एक अद्भुत तथ्य है. सारा वर्तमान, भूतकाल और भविष्य; इनका समय-मान इस चेतना के दायरे में है. चेतना समय और स्थान से परे है, सब केवल स्पंदन की तरंगें हैं. तो अगर तुम विस्मित हो, तो बस एक मुस्कान के साथ आंखें बंद कर सोचने लग जाओ.

– श्री श्री रविशंकर

Next Article

Exit mobile version