वासंतिक नवरात्र दूसरा दिन : ब्रह्मचारिणी दुर्गा का ध्यान
दधाना करपद्माभ्याम् अक्षमाला कमण्डलू। देवी प्रसीदतुमयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा ।। जो दोनों कर कमलों में अक्षमाला और कमण्डल धारण करती हैं, वे सर्वश्रेष्ठा ब्रह्मचारिणी दुर्गा देवी मुझ पर प्रसन्न हों. त्रिशक्ति के स्वरूप-2 तीनों मूर्तियों और शक्तियों के इस प्रकार से कर्तव्य-क्षेत्र सिद्ध हुए हैं. महाकाली-शक्तिसहित रूद्र संहारकर्ता हैं, महालक्ष्मी-शक्तिसहित विष्णु पालनकर्ता हैं और महासरस्वती-शक्तिसहित ब्रह्मा सृष्टिकर्ता […]
दधाना करपद्माभ्याम् अक्षमाला कमण्डलू।
देवी प्रसीदतुमयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा ।।
जो दोनों कर कमलों में अक्षमाला और कमण्डल धारण करती हैं, वे सर्वश्रेष्ठा ब्रह्मचारिणी दुर्गा देवी मुझ पर प्रसन्न हों.
त्रिशक्ति के स्वरूप-2
तीनों मूर्तियों और शक्तियों के इस प्रकार से कर्तव्य-क्षेत्र सिद्ध हुए हैं. महाकाली-शक्तिसहित रूद्र संहारकर्ता हैं, महालक्ष्मी-शक्तिसहित विष्णु पालनकर्ता हैं और महासरस्वती-शक्तिसहित ब्रह्मा सृष्टिकर्ता हैं.
इन तीनों शक्तियों और मूर्तियों के रूप में तथा अव्यव, आयुध (अस्त्र-शस्त्र),रंग आदि सब पदार्थों के संबंध में शास्त्र-पुराण के ग्रंथों में अत्यन्त विस्तार से वर्णन मिलता है. उनमें से छोटी-से-छोटी बात भी साधकों को आध्यात्मिक शिक्षा देने के लिए महत्वपूर्ण है.
तीनों शक्तियों के रंगों और कार्यों का यह चमत्कारी संबंध है कि रूद्र को जो संहाररूपी काम करना है, उसे कराने वाली महाकाली रूपी रूद्र-शक्ति अपने भयंकर कार्य के अनुरूप काले रंग की होती हैं, परंतु यह संहार का काम संहार के लिए नहीं,अपितु सारे संसार के रक्षण और कल्याण के लिए होता है. इसलिए वह बुरे हिस्से का संहार करके, बुराई से बचायी हुई अपनी असली वस्तु को विष्णु के हाथ में सौंप कर कहती हैं कि- भगवान् विष्णु, मैंने अपने पति श्रीमहादेव-रूद्र की शक्ति की हैसियत से बुराई का संहार कर दिया है. अतएव, हम दम्पति का काम पूरा हो गया है.
अब आप इस वस्तु को लेकर अपना जो पालन करने का है,उसे करो. महाकाली तो भगवान् शिव के मृत्युंजय स्वरूप का साक्षात् विग्रह हैं,क्योंकि शिव अर्थात् कल्याण वहीं हो सकता है, जहां शक्ति है, जो शिव और शक्ति का अपने आपमें अदभूत समन्वय है. जो मृत्यु पर विजय प्राप्त करने में, जो आनेवाली बाधाओं को दूर करने में समर्थ हैं- वह भगवती महाकाली हैं. (क्रमशः)
प्रस्तुति-डॉ एन के बेरा