आपने आज क्या किया?
अगर आप एक सच्चे खोजी हैं तो यही काफी है. सिर्फ यह सोच लेने से कि आप खोजी हैं, आप खोजी नहीं बन जाते और न ही आसपास के लोगों के ऐसा कह देने से आप खोजी बन जायेंगे. जब आप अज्ञानता की पीड़ा से गुजरते हैं, केवल तभी आप असली खोजी बनते हैं. उदाहरण […]
अगर आप एक सच्चे खोजी हैं तो यही काफी है. सिर्फ यह सोच लेने से कि आप खोजी हैं, आप खोजी नहीं बन जाते और न ही आसपास के लोगों के ऐसा कह देने से आप खोजी बन जायेंगे. जब आप अज्ञानता की पीड़ा से गुजरते हैं, केवल तभी आप असली खोजी बनते हैं.
उदाहरण के लिए अगर आप मुझसे पूछें, कि भोजन का सच्चा खोजी कौन है, तो मेरा जवाब होगा, जो भूखा है. हो सकता है कि किसी ने भोजन पर पीएचडी कर रखी हो या हो सकता है कि कोई आहार-वैज्ञानिक हो, लेकिन वह भोजन का खोजी नहीं कहलायेगा. जो इंसान भूखा है, वही भोजन खोजेगा. जिसे अज्ञानता की पीड़ा का अहसास है, वही ज्ञान की खोज करेगा और वही असली खोजी है. बाकी सब तो खोजी का रूप धारण किये हुए हैं. इसलिए अगर आपमें सिर्फ खोजने का गुण है, तो यही आपकी सबसे बड़ी विशेषता है.
ज्यादातर लोगों के मन में तो कभी-कभार जिज्ञासा उठती है. आप चौबीस घंटे में कितनी बार और कितने पल के लिए अपनी जानने की चाहत के प्रति सचेत होते हैं? हो सकता है आप कहें ‘नहीं-नहीं, मैंने तो सभी योग कार्यक्रमों में हिस्सा लिया है. मैंने पचपन दिनों का हठ योग किया है.’ लेकिन आपने कल क्या किया था, इस बात का आज कोई मतलब नहीं है. महत्वपूर्ण यह है कि आप आज क्या कर रहे हैं. एक किस्सा सुनाता हूं.
एक समय में दुनिया के सबसे बडे स्टील कारोबारी हुआ करते थे चार्ल्स एम श्वाब, तब मित्तल नहीं आये थे. स्टील किंग बनने से पहले श्वाब एक बड़े स्टील कारोबारी ए कार्नेगी के यहां काम किया करते थे. एक दिन उन्होंने कार्नेगी को एक तार भेजा, जिसमें लिखा था- ‘कल हमने उत्पादन के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिये.’ इस पर कार्नेगी ने उन्हें तुरंत जवाब भेजा- ‘लेकिन आप आज क्या कर रहे हैं?’ मैं भी सिर्फ इतना ही पूछ रहा हूं- ‘आप आज क्या कर रहे हैं?’
मेरा बस यही सवाल है. आप सोचेंगे, ‘सद्गुरु में बिल्कुल करुणा नहीं है. हमने इतना किया है उससे उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता.’ दरअसल, अगर आप एक खोजी हैं, तो आप जो कल थे, वह आपके लिए आज कोई मायने नहीं रखता. असली बात तो यह है कि ‘आपने आज क्या किया है?’
– सद्गुरु जग्गी वासुदेव