निर्विकार सुनना

यदि तुम सब तरह के पूर्वाग्रहों के साथ सुन रहे हो, तो यह सुनने का गलत ढंग है. तुम्हें लगता है कि सुन रहे हो, पर तुम्हें बस सुनाई दे रहा है, तुम सुन नहीं कर रहे. सही सुनने का मतलब होता है मन को एक तरफ रख देना. इसका यह मतलब नहीं होता कि […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 28, 2016 11:51 PM

यदि तुम सब तरह के पूर्वाग्रहों के साथ सुन रहे हो, तो यह सुनने का गलत ढंग है. तुम्हें लगता है कि सुन रहे हो, पर तुम्हें बस सुनाई दे रहा है, तुम सुन नहीं कर रहे. सही सुनने का मतलब होता है मन को एक तरफ रख देना. इसका यह मतलब नहीं होता कि तुम बुद्धू हो जाते हो कि जो कुछ भी तुम्हें कहा जा रहा है, उस पर तुम विश्वास करने लगते हो.

इसका विश्वास या अविश्वास से कुछ लेना-देना नहीं है. सही सुनने का मतलब है, ‘अभी मेरा इससे कुछ लेना-देना नहीं है कि इस पर मैं विश्वास करूं या ना करूं? इस क्षण राजी होने या ना राजी होने की कोई बात ही नहीं है. जो कुछ भी है, उसे सुनने का मैं प्रयास कर रहा हूं.

बाद में मैं तय कर सकता हूं कि क्या सही और क्या गलत है.’ और सही सुनने की सुंदरता यह है कि सत्य का अपना संगीत होता है. यदि तुम बिना पूर्वाग्रह के सुन सको, तुम्हारा हृदय कहेगा कि यह सत्य है. यदि वह सत्य है तो तुम्हारे हृदय में घंटियां बजने लगती हैं. यदि वह सत्य नहीं है, तुम अछूते बने रहोगे, उदासीन, विरक्त बने रहोगे; तुम्हारे हृदय में कोई घंटियां नहीं बजेंगी. यह सत्य का गुण है कि यदि तुम उसे खुले हृदय से सुनो, यह तत्काल तुम्हारी चेतना में प्रतिसाद पैदा करता है- तुम्हारा केंद्र ऊपर उठने लगता है.

अचानक सारा आकाश खुल जाता है. यह बात तार्किक ढंग से तय करने की नहीं है कि जो कहा जा रहा है, वह सत्य है या असत्य है. ठीक इससे उल्टा, यह सवाल तो प्रेम का है, न कि तर्क का. सत्य तत्काल तुम्हारे हृदय में प्रेम पैदा करता है; तुम्हारे अंदर बड़े रहस्यात्मक ढंग से कुछ छिड़ जाता है. लेकिन यदि तुम जो है; उसे गलत ढंग से सुनते हो, मन से पूरे भरे हुए, तुम्हारे सारे कचरे से भरे, तुम्हारी सारी जानकारी से भरे हुए- तब तुम अपने हृदय को सत्य का प्रतिसंवेदन नहीं करने दोगे.

तुम बहुत बड़ी संभावना से चूक जाओगे. तुम्हारा हृदय सत्य के अनुकूल होता है, यह कभी भी असत्य को प्रतिसंवेदित नहीं करता. असत्य के साथ यह पूरा मौन रहता है, बिना जवाब दिये, निर्विकार. सत्य के साथ यह नाचने लगता है, ऐसे जैसे कि अचानक सूरज उग गया और काली अंधेरी रात समाप्त हो गयी और सारी धरती जाग जाती है.

– आचार्य रजनीश ओशो

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