भगवान श्री गणेश हिंदुओं के लिए परम सम्माननीय और प्रथम पूज्य देवता हैं. अपने ही पिता भगवान शंकर से श्रीगणेश ने सर्वप्रथम पूजन का वरदान पाया है. वे साक्षात परब्रह्म परमात्मा हैं. भगवान श्रीगणेश को प्रसन्न किए बिना प्राणी मात्र का कल्याण संभव नहीं है. किसी भी साधक के इष्टदेव कोई भी देवता हों लेकिन भगवान श्रीगणेश की पूजा करना आवश्यक है. सर्वप्रथम भगवान गणेश की पूजा करने के बाद ही दूसरे देवी-देवताओं का पूजन करना चाहिए. भगवान श्रीगणेश की यह बड़ी बद्भुत विशेषता है कि उनके स्मरण मात्र से ही सब विघ्न बाधाएं दूर हो जाती है और सब कार्य निर्विघ्न दूर हो जाते हैं. लोक परलोक में सर्वत्र सफलता प्राप्त करने के लिए एकमात्र उपाय के रूप में हर कार्य को आरंभ करने से पहले भगवान श्रीगणेश की पूजा करनी चाहिए.
भगवान श्री गणेश से निम्न प्रकार से प्रार्थना करने से होगा लाभ
आनन्दरूपं कल्याणाकरं विश्वबन्धो संतापचंद्रं भववारिधिभद्रसेतो ।
हे विघ्नमृत्युदलनामृतसौख्यसिन्धो श्रीमन् विनायक तवाड़्घ्रियुगं नता: स्म: ।।
यस्मिन्न जीवजगदादिकमोहजालं यस्मिन्न जन्ममरणादभियं समग्रम् ।
यस्मिन् सुखैकघनभून्मि न दु:खमीषत् तद् ब्रह्म मंगलपदं तव संश्रयाम: ।।
वेदों और उपनिषद् आदि में भगवान श्रीगणेश की विविध, गायत्रियों का उल्लेख है, जिनमें गणेशजी के तत्पुरुष, एकदन्त, हस्तिमुख, वक्रमुण्ड, दन्ती, कराट आदि अनेक नामों से जाना जाता है. ये सभी नाम श्रीगणेश के पर्यायवाची नाम हैं और वे सभी नाम गणेशजी के स्वरुप और महत्व को व्यक्त करने वाले हैं एवं भक्तों के लिए शुभ और लाभप्रद हैं. आइए जानते हैं श्रीगणेश गायत्रियों के बारे में उनके उच्चारण से सुख संपत्ति की वृद्धि होती है.
ॐ तत्कराटाय विघ्नहे हस्तिमुखाय धीमहि। तन्नो दन्ती प्रचोदयात् ।।
ॐ तत्पुरुषाय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दन्ती प्रचोदयात् ॥
ॐ एकदन्ताय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दन्ती प्रचोदयात् ॥
ॐ लम्बोदराय विद्महे महोदराय धीमहि तन्नो दन्ती प्रचोदयात् ॥
ॐ महोत्कटाय विद्महे वक्रतुंडाय धीमही। तन्नोदंती प्रचोदयात् ॥
।। ॐ गं गणपतये नमो नमः ।। ।। श्री गणेशाय नम: ।।