सात्त्विक तप करें

जैन रामायण में प्रसंग आता है कि रावण को युद्ध करने के लिए शक्ति की अपेक्षा थी. रावण ने युद्ध में विजयी बनने के लिए तपस्या की. वह कई दिनों तक भूखा रहा. खूब जप किया उसने. यहां तक कि इंद्रिय-संयम तक किया, किंतु तपस्या का उद्देश्य अच्छा नहीं था. उसका उद्देश्य था शत्रु की […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 23, 2016 6:10 AM
जैन रामायण में प्रसंग आता है कि रावण को युद्ध करने के लिए शक्ति की अपेक्षा थी. रावण ने युद्ध में विजयी बनने के लिए तपस्या की. वह कई दिनों तक भूखा रहा. खूब जप किया उसने. यहां तक कि इंद्रिय-संयम तक किया, किंतु तपस्या का उद्देश्य अच्छा नहीं था. उसका उद्देश्य था शत्रु की सेना का विनाश. रावण ने तपस्या करके बहुरूपिणी विद्या प्राप्त की.
लक्ष्मण के साथ युद्ध के दौरान रावण ने अपने दस मुख बना लिये. यद्यपि लक्ष्मण शक्तिशाली पुरुष थे, किंतु रावण ने जब शक्ति का प्रहार किया, तो एक बार लक्ष्मण भी उसकी शक्ति से आहत हो गये. फिर विशल्या के याेग से लक्ष्मण ठीक हो गये. फिर पुन: युद्ध हुआ और आखिर रावण का विनाश हो गया. गीताकार ने कहा कि दूसरों का विनाश करने के लिए जो तप तपा जाता है, वह न सात्त्विक तप है, न राजसी तप है, वह तामसी तप की संज्ञा में आ जाता है.
हम तपस्या करें, साधना करें, उसका उद्देश्य पूर्वार्जित कर्म-निर्जरा, परम की प्राप्ति और आत्मा का कल्याण होना चाहिए. हमारी आत्मा ने पिछले जन्मों में कितने-कितने कर्मों का बंध किया होगा. हम किस-किस योनी में रहे होंगे. अब यह जो मानव जन्म मिला है, इसमें हमें कुछ ज्ञान प्राप्त हो सकता है. हम ऐसी साधना करें, ऐसी तपस्या करें कि हमारे पूर्वार्जित पापकर्म क्षीण हों और हम सद्गति या मोक्षगति की ओर अग्रसर हो सकें.
जैन वाङ्मय के अनुसार सुगति उसे मिलती है, जिस आदमी के जीवन में तपस्या की प्रधानता होती है. किसी से उपवास आदि ज्यादा न हो सके, तो अच्छे शास्त्रों का अध्ययन करे, धर्मकथा सुने और पवित्र परोपकार करने की भावना रखे. दूसरों का बुरा तो कभी करना ही नहीं चाहिए, जितना हो सके दूसरों का भला करने की, दूसरों का कल्याण करने की भावना रखना भी तपस्या करने जैसा है. ध्यान करना, प्रभु का स्मरण करना भी तपस्या है.
ऐसे मंत्रों का पाठ करें, जो चरित्र आत्माओं से जुड़े हुए मंत्र हैं. वह जप भी तपस्या बन जाता है. तपस्या के अनेक प्रकार हैं. व्यक्ति अपनी शक्ति के अनुसार अपने आपको तपस्या में नियोजित करने का प्रयास करे. तामस और राजस तप से बचे और सात्त्विक तप की आराधना करे.
– आचार्य महाश्रमण

Next Article

Exit mobile version