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क्या आप जानते हैं, हनुमान जी के पांच सगे भाई थे

आपको जानकर हैरानी होगी कि हनुमान जी के अपने पांच सगे भाई भी थे. पुराने में कई ऐसी बातों को उल्लेख है जिसके बारे में आम लोगों को कम ही पता होता है. पुराणों में कई ऐसे उल्लेख मिलते हैं जिसके बारे में आम लोग तो दूर बड़े बड़े शास्त्र के ज्ञाता भी इन बातों […]

आपको जानकर हैरानी होगी कि हनुमान जी के अपने पांच सगे भाई भी थे. पुराने में कई ऐसी बातों को उल्लेख है जिसके बारे में आम लोगों को कम ही पता होता है. पुराणों में कई ऐसे उल्लेख मिलते हैं जिसके बारे में आम लोग तो दूर बड़े बड़े शास्त्र के ज्ञाता भी इन बातों को जानकर आश्‍चर्य में रह जाते हैं. इसी प्रकार आपको यह जानकर भी हैरानी होगी कि जिस प्रकार भगवान श्रीराम के तीन भाई थे. उसी प्रकार हनुमान जी के भी पांच सगे भाई थे. ब्रह्माण्‍ड पुराण में इस बात का वर्णन मिलता है. आम लोगों सहित विद्वानों का भी यही मत रहा है कि हनुमान जी अपनी माता अंजनी और पिता केसरी के इकलौती संतान थे. लेकिन ब्रह्माण्‍ड पुरान में वानरों की विस्‍तृत वंशावली में इस बात का जिक्र है कि हनुमान जी के पांच और भाई भी थे.

ब्रह्माण्‍ड पुराण में उल्लेख

केसरी कुञ्जरस्याथ सुतां भार्यामविन्दत ॥ २,७.२२३ ॥

अञ्जना नाम सुभागा गत्वा पुंसवने शुचिः ।

पर्युपास्ते च तां वायुर्यौंवनादेव गर्विताम् ॥ २,७.२२४ ॥

तस्यां जातस्तु हनुमान्वायुना जगदायुना ।

ये ह्यन्ये केसरिसुता विख्याता दिवि चेह वै ॥ २,७.२२५ ॥

ज्येष्ठस्तु हनुमांस्तेषां मतिमांस्तु ततः स्मृतः ।

श्रुतिमान्केतुमांश्चैव मतिमान्धृतिमानपि ॥ २,७.२२६ ॥

हनुमद्भ्रातरो ये वै ते दारैः सुप्रतिष्ठताः ।

स्वानरूपैः सुताः पित्रा पुत्रपौत्रसमन्विताः ॥ २,७.२२७ ॥

ब्रह्मचारी च हनुमान्नासौदारैश्च योजितः ।

सर्वलोकानपि रणे यो योद्धुं च समुत्सहेत् ॥ २,७.२२८ ॥

जवे जवे च वितते वैनतेय इवापरः ।

हिंदी अर्थ : केसरी ने कुंजर की पुत्री अंजना को अपनी भार्या के रूप में ग्रहण किया. अंजना परम सुंदरी थी. अंजना का पुंसवन संस्कार हुआ और उसके गर्भ से जगत के प्राणस्वरुप वायु के अंश से हनुमान का जन्म हुआ. इनके अतिरिक्त केसरी के जो अन्य पुत्र स्वर्गलोक तथा भूतल पर विख्‍यात थे, उनमें हनुमान ज्येष्‍ठ थे. इनके बाद क्रमश: मतिमान्, श्रुतिमान्, केतुमान्, गतिमान् और धृतिमान् थे. ये जो हनुमान जी के भाई हैं सभी विवाहित थे. ये सभी अपने ही अनुरूप पुत्री, पुत्र और पौत्र से संयुक्त थे. परंतु हनुमान ब्रह्मचारी थे. इन्होंने दार परिग्रहण नहीं किया था. ये संग्राम में संपूर्ण लोकों से लोहा लेने का उत्साह रखते थे और वेग में तो मानों दूसरे गरुड़ ही थे.

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