रमजान : 27वीं शब देगी गुनाहों से माफी, फितरा है जरुरी
इसलाम के मुताबिक अकीदत (श्रद्धा) और ईमान के साथ क़द्र की शब (रात) में इबादत करनेवालों (इबादतगारों) के पिछले गुनाह माफ कर दिये जाते हैं. अल्लाह ने इस रात को हज़ार महीनों की रातों से बेहतर करार दिया है. शबे-कद्र को रात की रानी भी कहा जाता है. शबे-कद्र यानी एक ऐसी रात, जिसकी अहिमयत […]
इसलाम के मुताबिक अकीदत (श्रद्धा) और ईमान के साथ क़द्र की शब (रात) में इबादत करनेवालों (इबादतगारों) के पिछले गुनाह माफ कर दिये जाते हैं. अल्लाह ने इस रात को हज़ार महीनों की रातों से बेहतर करार दिया है. शबे-कद्र को रात की रानी भी कहा जाता है. शबे-कद्र यानी एक ऐसी रात, जिसकी अहिमयत को अल्लाहताला ने अपनी मुकद्दस किताब कुरआन पाकमें बयान फरमाया है. कुरआन के सूर कद्र में शबे-कद्र की अहिमयत का जिक्र है. आलिमों का कहना है कि जहां भी पिछले गुनाह माफ करने की बात आती है, वहां छोटे गुनाह बख्श दिये जाने से मुराद होती है. दो किस्म के गुनाहों कबीरा (बड़ा) और सग़ीरा (छोटा) में, कबीरा गुनाह माफ कराने के लिए ख़ुसूसी तौबा लाजिमी है. इस यकीन और इरादे के साथ कि आइंदा कबीरा गुनाह नहीं होगा. रमज़ान में महीनेभर तौबा के साथ मुख्तिलफ इबादतें की जाती हैं, ताकि इनसान के सारे गुनाह धुल जायें और सारी दुनिया का वली (मालिक) राज़ी हो जाये.
कुरआन के अनुसार रमज़ान महीने की 21 से 30 तारीख के बीच की ताक़ रातों यानी 21, 23, 25, 27 और 29 में से किसी एक रात में अल्लाह अपने बंदों क बड़े से बड़े गुनाहों को माफफरमाता है. इस रात में इबादत के बाद मांगी गयी हर जायज़ दुआ अल्लाह के दरबार में म़कबूल होती है. लिहाज़ा हर साल सच्चा मुसिलम रोज़ेदार इन पांच रातों में उस बाबरकत रात को तलाशता है. वैसे ज्यादातर उलेमा रमज़ानुल मुबारक की 27 तारीख की रात को शबे-कद्र होने पर इत्तफाक रखते हैं. इसलिए लोग 27 की रात को ही शबे-कद्र मानते हैं. लेकिन इसका पुख्ता यकीन किसी को नहीं कि यही रात ही शबे-कद्र है, क्योंकि कुरआन में इन पांचों में से किसी एक रात को ही शबे-कद्र का होना बताया गया है.
बस अल्लाह पाक को है उस शब का इल्म
यह तय नहीं माना जाता कि रमज़ान में शबे-कद्र कब होगी, पर 26वां रोज़ा और 27वीं शब को शबे-कद्र मान लिया जाता है. फिर भी वह असल पाकीज़ा रात कौन है, इसका इल्म अल्लाह पा़क के सिवाय किसी को नहीं होता. बेहतर यही है कि इनपांचों रातों में अल्लाह की इबादत कर उस बाबरकत रात को तलाशा जाये. 21 रमज़ान से मसिजदों में रोज़ेदार इबादत करते हुए शबे-कद्र की तलाश करते हैं.
शबे-कद्र में मुकम्मल हुआ कुरआन पाक
रमज़ानुल मुबारक का तीसरा असरा ढलान पर है. तीसरे असरे की 27वीं शब को शब-ए-कद्र के रूप में मनाया जाता है. इसीमुकद्दस रात में कुरआन भी मुकम्मल हुआ. रमज़ान के तीसरे असरे की पांच ताक़ रातों में शबे-कद्र खोजी जाती है. ये इबादत की रात होती है. इसी दिन बड़ा रोजा रखा जायेगा और कुरआन पूरे किये जायेंगे. रमज़ान की खास नमाज़ तरावीह पढ़ानेवाले हाफिज़ साहेबान इसी शब में कुरआन मुकम्मल करते हैं, जो तरावीह की नमाज़ अदा करनेवालों को मुखा या मौखिक रूप से सुनाया जाता है. साथ ही घरों में कुरआन की तिलावत (सस्वर पाठ) करनेवाली मुस्लिम मिहलाएं भी कुरआन मुकम्मल करती हैं. शबे-कद्र को रातभर इबादत के बाद सुबह-सुबह इसलामपरस्त अपने मरहूम रश्तेदारों, अजीज़ों-अकारब की कब्रों पर जाते हैं और फल पेश कर फातिहा (कुरआन की पहली सूरत, दिवंगत आत्मा की सद्गति के वास्ते सूर-ए-फातिहा आदि पढ़े जाने की रस्म) पढ़ते हैं और उनकी मगिफ़रत (मोक्ष) क लिए दुआएं भी मांगते हैं.
इस रात में अल्लाह की इबादतकरनेवाले मोमिन के दरवाजे बुलंद होते हैं. गुनाह बक्श दिये जाते हैं. दोजख (नर्क) की आग से निजात मिलती है. अल्लाहकी रहमत का ही सिला है कि रमज़ान में एक नेकी के बदले 70 नेकियां नामे-आमाल में जु़ड़ जाती हैं. वैसे तो पूरे माहेरमज़ान में बरकतें-रहमतें बरसती हैं. पर शबे-कद्र की खास रात में इबादत, तिलावत व दुआएं कबूल व म़कबूल होती हैं. अल्लाह ताअला की बारगाह में रो-रोकर अपने गुनाहों की माफी तलब करनेवालों के गुनाह माफ हो जाते हैं. इस रात ख़ुदाताअला नेक व जायज़ तमान्नाएं पूरी फरमाता है. रमज़ान का महीना अपने आखिरी मरहले (दौर) में है. मुमिकना तौरपर ईद-उल-फितर 06 जुलाई 2016 को मनाई जायेगी.
इस बार फितरे का भाव 45 रुपये
इस माह में ईद से पहले हर मुस्लिम को 1 किलो 633 ग्राम गेंहू या उसकी कीमत के बराबर ऱकम गरीबों में बांटनी होती है, जिसे फितरा कहते हैं. इस बार कोलकाता और आस-पास क बाज़ारों में फितरे का भाव 45-48 रुपये प्रति व्यक्ति तय है. फितरा हर पैसेवाले इनसान पर देना वाजिब है. नाबालिग बच्चों की ओर से उनके अभिभावकों को फितरा अदा करना होता है. रमज़ान में ही फितरा सहोदर (सगे भाई या बहन) को छोड़ कर किसी जरूरतमंद को ईद के पहले दे दिया जाता है. सालभर मेंज़कात (कुल आमदनी का 2.5 फीसदी) अदा करना भी हर मुस्लिम पर फर्ज होता है. ज़कात को सालभर के भीतर भी ज़रूरतमंदों, मुफिलसों में बांटा जाता है.