आज योगिनी एकादशी, इसके व्रत से मिट जाते हैं समस्त पाप

हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का महत्वपूर्ण स्थान है. साल में चौबीस एकादशी होती हैं. सभी का अपना अलग महत्व है. उनमें असाढ़ मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी को योगिनी एकादशी कहते हैं. इसके व्रत से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं. यह इस लोक में भोग और परलोक में मुक्ति देने वाली है. […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 30, 2016 10:13 AM

हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का महत्वपूर्ण स्थान है. साल में चौबीस एकादशी होती हैं. सभी का अपना अलग महत्व है. उनमें असाढ़ मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी को योगिनी एकादशी कहते हैं. इसके व्रत से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं. यह इस लोक में भोग और परलोक में मुक्ति देने वाली है. यह तीनों लोकों में प्रसिद्ध है. भगवान श्रीकृष्‍ण ने कहा है कि हे राजन! यह योगिनी एकादशी का व्रत 88 हजार ब्राह्मणों को भोजन कराने के बराबर फल देता है. इसके व्रत से समस्त पाप दूर हो जाते हैं और अंत में स्वर्ग प्राप्त होता है. जिस कामना से कोई भक्त संकल्प करके इस एकादशी का व्रत करता है उसकी वह कामना जहां बहुत जल्दी पूरी हो जाती है, वहीं जीव के सभी पापों एवं विभिन्न प्रकार के पातकों से भी छुटकारा मिलता है. किसी के दिए श्राप से मुक्ति पाने के लिए यह व्रत कल्पतरू के समान है. व्रत के प्रभाव से हर प्रकार के चर्म रोगों की निवृत्ति हो जाती है. एकादशी व्रत में रात्रि जागरण की अत्यधिक महिमा है. स्कंद पुराण के अनुसार जो लोग रात्रि में जागरण करते समय वैष्णवशास्त्र का पाठ करते हैं उनके करोड़ों जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं.

व्रत का विधान

1. आषाढ़ की कृष्णपक्ष की योगिनी एकादशी व्रत का नियम पालन दशमी की रात से ही शुरू करना चाहिए. व्रती को दशमी से ही तन, मन से ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए.

2. एकादशी के दिन यथासंभव उपवास करना चाहिए. उपवास में अन्न नहीं खाया जाता यानी भोजन किये बिना यह व्रत किया जाता है. संभव ना हो, तो बस रात में तारे देख कर भोजन करना चाहिए.

3. एकादशी को जुआ खेलना, सोना, पान खाना, दातून करना, परिनंदा, चुगली, चोरी, हिंसा, संभोग, क्रोध व झूठ बोलना आदि का त्याग करना चाहिए.

4. एकादशी को प्रात: स्नान करके श्रीविष्णु की पूजा विधिपूर्वक करनी चाहिए. यह धार्मिक कार्य स्वयं करें अथवा किसी विद्वान ब्राह्मण से भी कराया जा सकता है. स्वच्छ वस्त्र पहनकर भगवान श्रीविष्णु की मूर्ति के सामने बैठ कर संकल्प में यह मंत्र बोलें – ‘मम सकल पापक्षयपूर्वक कुष्ठादिरोग निवृत्तिकामनया योगिन्येकादशीव्रतमहं करिष्ये.

5. इसके बाद भगवान पुंडरीकाक्ष यानी श्रीविष्‍णु को यथोपचार पूजें. भगवान विष्णु को पंचामृत पान करायें. फिर उनके चरणामृत को व्रती अपने व परवार के सभी सदस्यों के अंगों पर छिड़कें और उस चरणामृत को पियें. माना जाता है कि इससे विशेष रूप से कुष्ठ रोगी की पीड़ा खत्म होती है और वह रोगमुक्त हो जाता है.

6. गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य आदि पूजन सामग्री से पूजा करें.

7. श्रीविष्णु सहस्‍त्रनाम का जाप व विष्णु कथा सुनें. भगवान विष्णु मंत्रों से आराधना एवं व्रतकथा का पाठ करें.

8. तन, मन से हिंसा त्यागें और किसी की बुराई ना करें. यथासंभव रात्री जागरण करते हुए भजन, कीर्तन व हरि का स्मरण करें.

9. योगिनी एकादशी व्रत के ऐसे पालन से सभी रोग व व्याधियों का अंत हो जाता है. साथ ही मन से अलगाव की भावना मिट जाती है और बिछड़े रिश्तेदार या संबंधी से मिलन हो जाता है.

व्रत कथा

स्वर्गधाम की अलकापुरी नामक नगरी में कुबेर नाम का एक राजा रहता था. वह शिव भक्त था और प्रतिदिन शिव की पूजा किया करता था. हेम नाम का एक माली पूजन के लिए उसके यहाँ फूल लाया करता था. हेम की विशालाक्षी नाम की सुंदर स्त्री थी. एक दिन वह मानसरोवर से पुष्प तो ले आया लेकिन कामासक्त होने के कारण वह अपनी स्त्री से हास्य-विनोद तथा रमण करने लगा. इधर राजा उसकी दोपहर तक राह देखता रहा. अंत में राजा कुबेर ने सेवकों को आज्ञा दी कि तुम लोग जाकर माली के न आने का कारण पता करो, क्योंकि वह अभी तक पुष्प लेकर नहीं आया. सेवकों ने कहा कि महाराज वह पापी अतिकामी है, अपनी स्त्री के साथ हास्य-विनोद और रमण कर रहा होगा.

यह सुनकर कुबेर ने क्रोधित होकर उसे बुलाया. हेम माली राजा के भय से कांपता हुआ ‍उपस्थित हुआ. राजा कुबेर ने क्रोध में आकर कहा- ‘अरे पापी! नीच! कामी! तूने मेरे परम पूजनीय ईश्वरों के ईश्वर श्री शिवजी महाराज का अनादर किया है, इस‍लिए मैं तुझे शाप देता हूँ कि तू स्त्री का वियोग सहेगा और मृत्युलोक में जाकर कोढ़ी होगा.’ कुबेर के शाप से हेम माली का स्वर्ग से पतन हो गया और वह उसी क्षण पृथ्वी पर गिर गया. भूतल पर आते ही उसके शरीर में श्वेत कोढ़ हो गया. उसकी स्त्री भी उसी समय अंतर्ध्यान हो गई. मृत्युलोक में आकर माली ने महान दु:ख भोगे, भयानक जंगल में जाकर बिना अन्न और जल के भटकता रहा. रात्रि को निद्रा भी नहीं आती थी, परंतु शिवजी की पूजा के प्रभाव से उसको पिछले जन्म की स्मृति का ज्ञान अवश्य रहा.

घूमते-घ़ूमते एक दिन वह मार्कण्डेय ऋषि के आश्रम में पहुंच गया, जो ब्रह्मा से भी अधिक वृद्ध थे और जिनका आश्रम ब्रह्मा की सभा के समान लगता था. हेम माली वहां जाकर उनके पैरों में पड़ गया. उसे देखकर मार्कंडेय ऋषि बोले तुमने ऐसा कौन-सा पाप किया है, जिसके प्रभाव से यह हालत हो गई. हेम माली ने सारा वृत्तांत कह ‍सुनाया. यह सुनकर ऋषि बोले- निश्चित ही तूने मेरे सम्मुख सत्य वचन कहे हैं, इसलिए तेरे उद्धार के लिए मैं एक व्रत बताता हूं. यदि तू ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की योगिनी नामक एकादशी का विधिपूर्वक व्रत करेगा तो तेरे सब पाप नष्ट हो जाएंगे. यह सुनकर हेम माली ने अत्यंत प्रसन्न होकर मुनि को साष्टांग प्रणाम किया. मुनि ने उसे स्नेह के साथ उठाया. हेम माली ने मुनि के कथनानुसार विधिपूर्वक योगिनी एकादशी का व्रत किया. इस व्रत के प्रभाव से अपने पुराने स्वरूप में आकर वह अपनी स्त्री के साथ सुखपूर्वक रहने लगाके लिए कहा. हेम माली ने व्रत किया तथा उसके प्रभाव से उसे राजा कुबेर के श्राप से मुक्ति मिली.

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