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श्रावण में ”शिव लिंगाष्‍टकम्” का करें जाप, मिलेंगे मनवांक्षित फल

देवों के देव महादेव का मास श्रावण कुछ ही दिनों बाद शुरू हो रहा है. माना जाता है कि इस समय भगवान भोलेनाथ इस पूरे महीने झारखंड के देवघर में निवास करते हैं. इस दौरान देवघर में श्रावणी मेले का आयोजन किया जाता है. पूरे महीने चलने वाले इस उत्सव में करोड़ो लोग भगवान शंकर […]

देवों के देव महादेव का मास श्रावण कुछ ही दिनों बाद शुरू हो रहा है. माना जाता है कि इस समय भगवान भोलेनाथ इस पूरे महीने झारखंड के देवघर में निवास करते हैं. इस दौरान देवघर में श्रावणी मेले का आयोजन किया जाता है. पूरे महीने चलने वाले इस उत्सव में करोड़ो लोग भगवान शंकर का जलाभिषेक करते हैं. कांवरिया हाथों में गंगाजल लेकर सुल्तानगंज से देवघर आते हैं और भगवान शिव पर गंगाजल अर्पित करते हैं. एक और मान्यता के अनुसार भगवान शंकर ने इसी मास में समुद्र मंथन से निकलने वाले विष का पान किया था. इसी गर्मी को शांत करने के लिए भगवान भोलेनाथ पर जल चढ़ाने की परंपरा है. शिवपुराण के अनुसार शिव संसार के रचयिता हैं और बुरी शक्तियों के विनाशक भी है.

शिव की शक्तियां, गुण और भक्ति सुख देने वाली है. भगवान शिव कल्पवृक्ष की तरह ही है, जो हर इच्छा को पूरी करते है. शास्त्रों के अनुसार भगवान शिव के शिवलिंग की उपासना व दर्शन करने से इच्छारूपी सिद्धी प्राप्त होती है. इंसान को किसी भी क्षेत्र मे सफलता पाने के लिए पूरे सावन मास में रोजाना शिव मंत्र की स्तुति करनी चाहिए, जिससे साधक का भाग्य सावन माह मे चमक जायेगा. ‘लिगांष्टकम्’ के रूप में प्रसिद्ध इस शिव मंत्र की कृपा से व्यक्ति मानवांक्षित फल प्राप्त करता है. यह मंत्र इस प्रकार है –

ब्रह्ममुरारी सुरार्चित लिंगं, बुद्धी विवरधन कारण लिंगं।

संचित पाप विनाशन लिंगं, दिनकर कोटी प्रभाकर लिंगं।

तत्प्रणमामि सदाशिव लिंगं ।।

देवमुनिप्रवरार्चितलिङ्गम् कामदहम् करुणाकर लिङ्गम्।

रावणदर्पविनाशनलिङ्गम् तत् प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम् ।।

सर्वसुगन्धिसुलेपितलिङ्गम् बुद्धिविवर्धनकारणलिङ्गम्।

सिद्धसुरासुरवन्दितलिङ्गम् तत् प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम् ।।

कनकमहामणिभूषितलिङ्गम् फनिपतिवेष्टित शोभित लिङ्गम्।

दक्षसुयज्ञ विनाशन लिङ्गम् तत् प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम् ।।

कुङ्कुमचन्दनलेपितलिङ्गम् पङ्कजहारसुशोभितलिङ्गम्।

सञ्चितपापविनाशनलिङ्गम् तत् प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम।।

देवगणार्चित सेवितलिङ्गम् भावैर्भक्तिभिरेव च लिङ्गम्।

दिनकरकोटिप्रभाकरलिङ्गम् तत् प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम्।।

अष्टदलोपरिवेष्टितलिङ्गम् सर्वसमुद्भवकारणलिङ्गम्।

अष्टदरिद्रविनाशितलिङ्गम् तत् प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम्।।

सुरगुरुसुरवरपूजित लिङ्गम् सुरवनपुष्प सदार्चित लिङ्गम्।

परात्परं परमात्मक लिङ्गम् तत् प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम् ।।

लिङ्गाष्टकमिदं पुण्यं यः पठेत् शिवसन्निधौ।

शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते।।

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