गुरु बिनु ज्ञान कहां से पाऊं

बल्देव भाई शर्मा दो दिन बाद गुरु पूर्णिमा का पर्व देश भर में पूरी श्रद्धा से मनाया जायेगा. भारतीय जीवन दर्शन में गुरु की महिमा बार-बार गायी और बतायी गयी है. वेद-पुराण-उपनिषद इससे भरे पड़े हैं.गृधातु से गुरु शब्द की रचना बतायी गयी है. निरुक्त में कहा गया है- यो धम्यान् शब्दान गृनात्युपरदशिति स गुरु:/स […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 16, 2016 1:33 AM

बल्देव भाई शर्मा

दो दिन बाद गुरु पूर्णिमा का पर्व देश भर में पूरी श्रद्धा से मनाया जायेगा. भारतीय जीवन दर्शन में गुरु की महिमा बार-बार गायी और बतायी गयी है. वेद-पुराण-उपनिषद इससे भरे पड़े हैं.गृधातु से गुरु शब्द की रचना बतायी गयी है. निरुक्त में कहा गया है- यो धम्यान् शब्दान गृनात्युपरदशिति स गुरु:/स पूर्वेषामणि गुरु: कालेनानवच्छेदात्. अर्थात जो धर्म का प्रतिपादक है, सकल विद्या युक्त वेदों का उपदेशकर्ता है, सृष्टि के आदि में अग्नि-वायु-सूर्य-अंगिरा और ब्रह्मा जैसे गुरुओं का भी गुरु है, जिसका नाश कभी नहीं होता उस परमेश्वर का नाम गुरु है. इसीलिए कबीर ने गुरु को परमेश्वर (गोविंद) से भी ज्यादा महत्व दिया है क्योंकि उस तक पहुंचने का मार्ग गुरु ही बताता है.

यह बाजार का दौर है जहां हर चीज बेचने की कला का ही महत्व है. आप घर में अच्छे से अच्छे ब्रांड का टीवी लगाये हुए हैं, रोज उससे सारा घर मनोरंजन करता है, लेकिन अचानक बाजार आपको बताता है कि आपका टीवी तो डब्बा है. आप खिन्न हो जाते हैं कि हजारों रुपये खर्च कर जो टीवी घर लाये वह डब्बा निकला.

वास्तव में यह ‘ऐड गुरु’ का कमाल है जो आपको आपकी जिंदगी की जरूरतों के बारे में बताता है कि यह खरीदो-यह मत खरीदो. आैर आप अच्छी-खासी चीज को कंडम समझ कर घर से बेदखल कर देते हैं व जिसे ऐड गुरु अच्छी बता रहा है उसे खरीद लाते हैं. भले ही जेब में पैसा न हो, कर्ज ले लेंगे और किस्त बंधवा कर उसका हर महीने भुगतान करेंगे क्योंकि दुनियावी होड़ में पिछड़ना नहीं चाहते.

इस दौर में अपनी जरूरतें हम नहीं तय करते बल्कि बाजार तय करता है कि हमें क्या चाहिए, क्या खरीदना है, क्या पहनना है, क्या खाना है, कहां खाना है सब कुछ. और जो बाजार की इस रस्म को नहीं मानता वह पिछड़ा हुआ है.

सरकारें भले ही जातियों के आधार पर पिछड़ा और अति पिछड़ा वर्ग तय करती हैं, लेकिन वे नया समाजीकरण है जिसमें बाजार तय करता है कि आप पिछड़े हुए हैं या ‘एडवांस’ मान कर खुश हैं. वह छह महीने बाद चलन से बाहर हो गया, नया आ गया. तब आपको उस नये को अपनाना पड़ेगा, नहीं तो आप पिछड़े ही रह जायेंगे. इसलिए आपके मार्गदर्शन के लिए बाजार ने फैशन गुरु, ऐड गुरु और भी न जाने कौन-कौन से गुरु पैदा कर दिये. ये आपको हर छह-आठ महीने में बताते हैं कि अब ये ठीक है, ये नहीं.

इसी प्रक्रिया से बाजार चलता है और आपकी जेब खाली रहती है और गुरु अपनी जेब भर कर बाजार पर राज करता है. लेकिन बाजार की रफ्तार इन गुरुओं को भी बदल देती है क्योंकि इनका दिखाया मार्ग जब एक ढर्रा बन जाता है तब ये बाजार के काम के नहीं रहते. बाजार को नित नया चाहिए ट्रेेंड हो या गुरु. इस नित नये को खरीदने में पैसे से ज्यादा तो जिंदगी खर्च होती है. जब वर्षों नित नयी फेयरनेस क्रीम इस्तेमाल कर भी रंग नहीं निखरता तो सब बेकार गया.

आज वे, कल वो, इसी को पकड़ने के लिए दौड़ते-दौड़ते आदमी बेहाल हो जाता है और अंत में सोचता है कि जिंदगी तो फिजूल में ही खर्च हो गयी, हाथ कुछ नहीं आया.

इसी को हमारे शास्त्रकारों ने नश्वरता कहा है जैसे शरीर नश्वर है और आत्मा शाश्वत, चिरंतन. इसलिए जो आज है-कल नहीं, उसके पीछे दौड़ कर जिंदगी क्याें खपाना. इसी फेर में पड़ कर तो आज ज्यादातर लोग अशांत, बेचैन और असंतुष्ट रहते हैं, उनकी सारी जिंदगी क्लेश में बीतती है. ऐसे ही लोगों के लिए हमारे लोक गीतों में कहा गया है ‘तेरा हीरा रे जनम यों ही गया, तेरी बारी रे वयस यों ही गयी.’ ये हीरा जैसा मनुष्य का जन्म और ये अनमोल युवावस्था व्यर्थ गंवाने के लिए है इन भौतिक लालसाओं के पीछे दौड़ कर, जो आज हैं-कल नहीं?

ये प्रश्नाकुलता ही जन्म देती है गुरु को जो भौतिक और नश्वर लालसाओं के अज्ञान से निकाल कर आत्मचिंतन और आत्मज्ञान की राह पर ले जाये. यह अज्ञान ही तो जीवन का अंधकार है जिसमें हम भटकते रहते हैं और इससे बाहर निकलने की सही राह नहीं खोज पाते हैं. इसीलिए हमारे शास्त्रकारों ने गुरु का महत्व बार-बार उद्धृत किया ताकि हम उसकी बांह पकड़ कर उस गहन अंधकूप से बाहर निकलें और जीवन के प्रकाशमान पथ पर आगे बढ़ें .

कबीर ने कहा है- ‘गुरु के चरन चांप रे वंदे जनम भरन दूर कर लें.’ गुरु की सेवा और आशीर्वाद से जाे ज्ञान मिलता है, वह जन्म-मरण से छुटकारा दिलाने वाला है. इस जन्म-मरण के बंधन से मुक्त होना ही मोक्ष है. वेदांत में मानव जीवन का लक्ष्य उद्घाटित करते हुए कहा गया है ‘आत्मानं मोक्षार्थं जगद् हिताय च’ यानी अपने मोक्ष और लोक कल्याण के लिए जीयें.

स्वामी विवेकानंद ने ‘रामकृष्ण मिशन’ की स्थापना करते समय इसे ही ध्येय वाक्य (मोटो) बनाया.

इस मोक्ष और लोक कल्याण का मार्ग गुरु ही हमें दिखाता है. वास्तव में यही आत्मज्ञान है कि हमें मनुष्य का जन्म क्यों मिला ? इस आत्म ज्ञान को प्राप्त करने के लिए तो नचिकेता यम से भिड़ गया था. इस आत्मज्ञान का साक्षात्कार गुरु ही कराता है और अज्ञान के अंधकार से निकाल कर प्रकाश के द्वार पर ले जाकर हमें खड़ा कर देता है जहां से हमें मोक्ष और लोककल्याण का मार्ग मिलता है.

इसी को अद्वयततरकोपनिषद में इस तरह परिभाषित किया गया है- ‘गुशब्दस्त्वंधकार: स्यादु शब्दस्तन्निरोधक:.’जैसा कि पाश्चात्य दर्शन में जीवन का लक्ष्य अधिकाधिक उपभोग बताया गया है ‘ईट ड्रिंक एंड बी मेरी’ यानी खाओ, पीओ, मौज करो, इतना भर मनुष्य जीवन का अर्थ नहीं है. क्योंकि यह संघर्ष का मार्ग है, जब हर आदमी अपने मौज-मजे के लिए ही जीयेगा तो दूसरो से टकराव निश्चित है.

इसीलिए पश्चिम में सिद्धांत बना सरवाइवल ऑफ द फिटेस्ट. फिटेस्ट यानी सबसे ताकतवर बनने के लिए ही तो सारा संघर्ष है ताकि देश हो या व्यक्ति, अपनी सुख-समृद्धि के लिए दूसरों का भी हक हड़प जाओ. इसमें से शांति-सद्भाव कैसे समाज में पैदा होगा ? आज दुनिया में चारों ओर यही दिख रहा है. भारतीय दर्शन में मनुष्य के इसी भटकाव को रोेकने के लिए गुरु की संकल्पना सामने आयी.

हमने माता को प्रथम गुरु माना है. वही तो हमें जीवन का बोध कराती है. रिश्तों की डोर में बांध कर प्रेम की अनुभूति कराती है. यहां तक कि मां ही बताती है बच्चे को कि वह तेरा पिता है.

फिर इस गुरुत्व का विस्तार होता है जहां सीखने की ललक और अपने को जानने की चाह बुद्ध को वन-वन भटकाती है और अंत में वह स्वयं में ही गुरु को खोज लेते हैं. ऋषि दत्तात्रेय ने पशु-पक्षी व वनस्पतियों में तेरह गुरु खोज लिए. दरअसल गुरु मन के अंदर झांकने की खिड़की है, इसीलिए कबीर ने कहा- गढ़ि गढ़ि काढ़ै खोट. गुरु मन के विकारों को, जिंदगी की बुराइयों को ढूंढ़-ढूंढ कर निकलता है और खरा सोना बना देता है.

इसलिए गुरु के चयन में बहुत सावधानी की जरूरत है. यों ही किसी को अचानक प्रभावित होकर गुरु बना लेता उचित नहीं है, अन्यथा इस गुरुडम के दौर में हमारी श्रद्धा तो तहस-नहस होती ही है, सही रास्ता भी हमसे छूट जाता है.

कबीर ने सावधान किया है- ‘जाकर गुरु ही अंधड़ा/चेता खरा निखंत/अंधेहि अंधा ठेलिया/ दोनों कूप पड़ंत.’ किताबी ज्ञान या कैरियर चमकाने की पढ़ाई कराने वाले तो लाखों खर्च करके खूब मिल जाते हैं पर जीवन का मर्म समझाने वाला गुरु बहुत मुश्किल से मिलता है. उसे गुरु की खोज और उससे ज्ञान प्राप्त करने की पात्रता (एलिजिबिलिटी) का बोध कराने वाली है गुरु पूर्णिमा. इसी दिन वेद, पुराण, महाभारत और गीता ज्ञान जैसा दर्शन देने वाले महर्षि वेदव्यास का जन्म हुआ, इसीलिए इसे व्यास पूर्णिमा भी कहते हैं.

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