व्रज के घर-घर में होती है हनुमान जी की पूजा, शनि का नहीं होता प्रभाव

।। अमलेश नंदन सिन्हा ।। चौरासी कोस व्रज और उसके आसपास का विस्तृत क्षेत्र हनुमान जी के प्रति श्रद्धा और विश्‍वासपूर्ण भक्ति से ओतप्रोत है. यहां के सभी नर नारि और बच्चे इष्‍टदेवता के रूप में हनुमान जी की पूजा करते हैं. यहां के घर-घर में हनुमान जी के प्रति अजीब श्रद्धा देखने को मिलती […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 23, 2016 12:42 PM

।। अमलेश नंदन सिन्हा ।।

चौरासी कोस व्रज और उसके आसपास का विस्तृत क्षेत्र हनुमान जी के प्रति श्रद्धा और विश्‍वासपूर्ण भक्ति से ओतप्रोत है. यहां के सभी नर नारि और बच्चे इष्‍टदेवता के रूप में हनुमान जी की पूजा करते हैं. यहां के घर-घर में हनुमान जी के प्रति अजीब श्रद्धा देखने को मिलती है. व्रज में ऐसा कोई भी गांव नहीं जहां हनुमान जी के तीन चार मंदिर ना हों. ब्रजवासी इन मंदिरों में पहुंचकर अपनी साधना आराधना करते हैं और मनोकामना पूर्ति की कामना करते हैं. व्रज में बच्चे जब पहली बार स्कूल जाते हैं तो गांव में हनुमान जी के नाम की मिठाई बांटी जाती है. माताएं अपने छोटे बच्चों को हनुमान मंदिर के पुजारी से मोरपंख से झार करवाते हैं, ताकि बच्चा भूत-प्रेत और अन्य व्याधियों से दूर रहे. हनुमान जी के घर-घर में पूजे जाने के कारण ही व्रज के लोगों पर शनि का प्रभाव नहीं पड़ता. शनि के प्रभाव को दूर करने के लिए शास्त्रों में हनुमान जी की पूजा का विधान है. हनुमान जी की पूजा के शनि के दुष्‍प्रभाव से मुक्ति मिलती है.

श्रीहनुमानजी को व्रज के लोग तब से जानते हैं जब त्रेता युग में भगवान श्रीराम ने समुंद्र पर पुल बनाया था. उस समय की एक कथा प्रचलित है – पुल बनाते समय जब हनुमान जी हिमालय की गोद से एक विशाल पर्वत को उठाकर ला रहे थे तभी भगवान ने आदेश दिया कि सभी वानर पर्वतों को जहां का तहां स्थापित करें. हनुमान जी ने उस भूखंड को व्रज में ही स्थापित कर दिया. वहीं पर्वत गोवर्धन पर्वत के रूप में प्रसिद्ध है. जब पर्वत ने हनुमान जी से आग्रह किया कि वह तो कहीं का नहीं रहा. वहां कैलाश में महादेव के सानिध्‍य में था बाद में सोचा कि श्रीराम प्रभू के काम आउंगा लेकिन अब तो कहीं का ना रहा. पर्वत के ऐसा कहने पर हनुमान जी ने कहा कि तुम द्वापर में श्रीकृष्‍ण का सानिध्‍य प्राप्त करोगे. हनुमान जी ने कहा कि जहां श्रीराम और श्रीकृष्‍ण होंगे मैं भी वहीं रहूंगा. इस प्रकार तब से हनुमान जी भी व्रज में ही बस गये.

भगवान राम ने हनुमानजी से कहा था कि जिस प्रकार तुमने सीता का पता लगाया, यह उपकार मैं कभी भी नहीं भूल पाउंगा. श्रीराम ने कहा था कि तुम्हारे उपकार के बदले तुम्हे देने के लिए मैं क्या लाउं, यह समझ में नहीं आ रहा है.

सुनु कपि तोहि समान उपकारी। नहिं कोउ सुर नर मुनि तनुधारी॥

प्रति उपकार करौं का तोरा। सनमुख होइ न सकत मन मोरा॥

सुनु सुत तोहि उरिन मैं नाहीं। देखेउँ करि बिचार मन माहीं॥

इन्हीं वचनों का मान रखने के लिए द्वापर में श्रीकृष्‍ण अवतार में प्रभु श्रीराम ने हनुमानजी को कई बार अपने सानिध्‍य का अवसर दिया. यहांतक की महाभारत के युद्ध के बाद श्रीकृष्‍ण ने हनुमान जी के आग्रह पर श्रीराम, श्रीलखन जानकी संग हनुमान जी को दर्शन भी दिए.

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