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श्रावण विशेष : काल, माया व कर्मपाशों में आबद्ध जीवों के पति हैं – पशुपति महादेव

चराचर जगत में परमेश्वर ही सबों के नियंता हैं. हरेक प्राणियों के अंदर एक ऊर्जा कायम है जिसे आत्मा कहा जाता है. आत्मा कभी नहीं मरती है. जगत के सभी जीवों के प्राणधार पशुपति शिव हैं. काल, माया एवं कर्मपाशों में आबद्ध जीवों (पशुओं) के पति कहे जाने वाले पशुपति शिव ही सब कुछ हैं. […]

चराचर जगत में परमेश्वर ही सबों के नियंता हैं. हरेक प्राणियों के अंदर एक ऊर्जा कायम है जिसे आत्मा कहा जाता है. आत्मा कभी नहीं मरती है. जगत के सभी जीवों के प्राणधार पशुपति शिव हैं. काल, माया एवं कर्मपाशों में आबद्ध जीवों (पशुओं) के पति कहे जाने वाले पशुपति शिव ही सब कुछ हैं. पशुपति की मरजी से ही पूरी दुनिया चलती आयी है और आगे भी चलेगी. सुधि जनों का यह मानना है. पल में प्रलय की बात कही गयी है. वाकई में यह सत्य है और अकाट्य है. पशुपति चाहे तो पलक झपकाते ही सृष्टि को खत्म कर सकती है और विकसित भी कर सकती है. देवाधिदेव को पशुपति की संज्ञा पौराणिक आख्यानों व ग्रंथों में दी गयी है. भारतीय बा्मय में अठारह पुराणों की उल्लेख है. अठारह पुराणों में महर्षि वेद व्यास का कथन है- परोपकाराय पुण्याय, पापाय परपीडनम्. स्कंद पुराण का स्थान पुराणों में उत्कृष्ट माना गया है. अख्यानों के अनुसार भगवान स्कंद द्वारा कथित यह पुराण है. इसे दो रूपों में वर्णित है – एक खंडात्मक व दूसरा संहितात्मक.

स्कंदपुराण में माहेश्वर, वैष्णव, ब्रह्मा, काशी, अवंती (ताप्ती और रेवाखंड), नागर तथा प्रभास ये सात खंड हैं. संहितात्मक स्कंदपुराण में सनत कुमार, सूत, शंकर, वैष्णव, ब्रह्मा तथा सौर ये छह संहिताएं समाविष्ट हैं. कृष्णद्वैपायन भगवान वेदव्यास के परम शिष्य सूत जी महाराज इस संहिता के वक्ता हैं जिनके चलते सूत संहिता की संज्ञा से अभिभूषित की गयी है. इसमें पशुपति शिव की अर्चना व साधना का सर्वोतम उल्लेख आया है. ग्रंथों के अनुसार ईश्वर के दो रूप – अपर व पर इस जगत में व्याप्त है. हिमाचल नंदिनी पार्वती के पति समेत कई उपाधि से युक्त अपर रूप व निरस्त समस्त उपाधि वाला स्वप्रतिष्ठि अखंड सच्चिदानंद एकरस परातत्व है. भगवान पशुपति की सृष्टि के सूत्रधार हैं, सबों के प्राणधार हैं- आधारं सर्वलोकामनाम्. अब स्कंदपुराण के इस मंत्र को देखें तो-

मामेवं वेदवाक्येभ्यो जनात्याचार्यपूर्वकम्।

य: पशु: स विमुच्येत ज्ञानाद्वेतदांतवाक्यजात्।।

कहने का तात्पर्य है कि वेद वाक्यों से, आचार्य गुरूओं से, वेदांत वाक्यों से व ज्ञान दृष्टि से जो जीव भली भांति जान लेता है,वह द्वैत प्रपंच से सदा के लिए मुक्त हो जाता है. लोग शिव के नाम का जाप मंत्रों के माध्यम से किया करते हैं और अपने इष्ट देव को प्रसन्न करते हैं. आस्था का जो समंदर सावन माह में दीखता है वह पशुपति शिव की ही महिमा का वर्तमान परिप्रेक्ष्य में दीदार है. पुशपति शिव के मंत्रों का जाप जो भी नर नारी करते हैं, मुक्ति पाने के अधिकारी हैं.

नम: शिवायाद्भुत विग्रहाय ते, नम: शिवायाद्भुतविक्रमाय ते ।

नम: शिवायाखिलनायकाया ते, नम: शिवायामृतहेतवे नम: ।।

यह मंत्र स्कंदपुराण में आया है. पशुपति शिव की आराधना के बारे में बताया गया है. मुक्ति क्या है. इसके उपाय कौन कौन से हैं और मोक्षदाता कौन हैं. ब्रह्मादि से लेकर जड़, कीट, पतंग आदि सभी जीवों को पशु की संज्ञा दी गयी है. शिव नहीं तो जग नहीं को कतई नकारा नहीं जा सकता है. नमस्ते रूद्रमन्यव उतोत इषवे नम:..मंत्र का जाप करने से पशुपति प्रसीद होते हैं. पौराणिक आख्यानों के अनुसार प्रथम प्रजापति ब्रह्मा ने तप से भगवान शंकर का अनुग्रह प्राप्त कर तीन वेदों, तीन लोकों व अग्नि,वायु, सूर्य आदि देवताओं की सृष्टि की. पशुपति को प्रसन्न करने के लिए अष्टाक्षर मंत्र की लोकप्रियता आज भी कायम है.

उं महादेवाय नम:, उं महेश्वराय नम:, उं पिनाकधृषेनम:, उं शूलपाणये नम:

शिव की महिमा का गुणगान हरेक ग्रंथों में किसी न किसी रूप में आया है. पुशपतिवचनाद् भवामि सद्य:..का हर जगह चरितार्थ है. शिव के समान देवता नहीं है, शिव के समान गति नहीं है, शिव के समान दान नहीं है और शिव के समान यौद्धा नहीं है..का प्रसंग अनुशासन पर्व में आया है.

नास्ति शर्वसमो देवो नास्ति शर्वसमागति।

नास्ति शर्वसमो दाने नास्ति शर्वसमो रणो ।।

जिस देव का कलेवर पौराणिक कथाओं में बांधा नहीं जा सका है, को आदि काल से लोग कैसे बिसार सकते हैं. परिणति है कि पशुपति की पूजा का प्रवाह दिनानुदिन समृद्धि की ओर है.

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