परमात्मा का प्रकाश

मनुष्य ने इस अंधकार से अपने आपको मुक्ति दिलाने के लिए पहले आग जलायी, लैंप जलाये और बिजली के बल्ब या ट्यूब जलाते हैं, पर सोने के समय फिर रोशनी बाधा पहुंचाती है. इसलिए फिर हमें अंधकार चाहिए. आदमी बहुत बढ़िया घर बनाये, बेशकीमती फानूस लगाये, कीमती लाइटें लगवाये, लेकिन नींद के समय ये सब […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 27, 2016 7:09 AM
मनुष्य ने इस अंधकार से अपने आपको मुक्ति दिलाने के लिए पहले आग जलायी, लैंप जलाये और बिजली के बल्ब या ट्यूब जलाते हैं, पर सोने के समय फिर रोशनी बाधा पहुंचाती है. इसलिए फिर हमें अंधकार चाहिए. आदमी बहुत बढ़िया घर बनाये, बेशकीमती फानूस लगाये, कीमती लाइटें लगवाये, लेकिन नींद के समय ये सब बंद कर देता है. महंगे साउंड सिस्टम का कुछ समय मजा लेता है, फिर कहता कि बंद करो इसको. अब संगीत भी शोर लगने लगा. लाइट भी बंद. अंधकार पहले भी, अंधकार बाद में भी. अंधकार दिन के पहले भी, अंधकार दिन के अंत में भी. अंधकार जन्म से पहले भी, अंधकार मृत्यु की घड़ी से फिर शुरू हो जाता है.
अजब बात यह है कि आप अंधकार से डरते हैं और रोशनी में आपको उत्तेजना और प्रसन्नता होती है. होना तो इसका उल्टा चाहिए, क्योंकि अंधकार आपका साथी है. रोशनी एक मेहमान है, जो कुछ समय के लिए आती है और फिर कुछ समय बाद चली जाती है. हमारी सारी साधना इसीलिए है कि हम इस रोशनी को अपने जीवन में चिरस्थायी कर सकें. प्रकृति ने दिन व रात का प्रावधान दिया.
किंतु मानव मस्तिष्क ने पहले अग्नि को खोजा, फिर नन्हें मिट्टी के दीये बना कर अंधियारी रातों को भी उजाला कर लिया. ठीक इसी तरह गुरु भी अपने शिष्यों के जीवन में अपने ज्ञान, करुणा व प्रेम के नन्हें-नन्हें दीयों को जगा कर उनके जीवन को प्रकाशवान करता है. ज्ञान, ध्यान व स्नेह के दीयों की दीपावली नित्य ही सदशिष्यों के जीवन को सौंदर्यवान बनाती है, जो बाहरी दीयों की खत्म हो जानेवाली रोशनी की जगह चिर-स्थायी अंतर्जगत की दीपावली में प्रवेश कराती है.
साधक के लिए ये बाहरी दीये संदेश हैं, भीतर की दीपावली की ओर अग्रसर होने का. परमात्मा प्रकाश स्वरूप है, लेकिन प्रकाश को प्रस्फुटित होने के लिए एक द्वार तो चाहिए. जैसे बिजली को रोशनी में बदलने के लिए एक माध्यम तो चाहिए, चाहे वह बल्ब हो, या ट्यूब हो, कुछ हो. इसी तरह से ज्ञान रूप परमात्मा है, लेकिन इस ज्ञान रूप परमात्मा को भी अपना ज्ञान रूप प्रकाश देने के लिए, यह शरीर रूपी गुरु की आवश्यकता है.
-आनंदमूर्ति गुरु मां

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