गणेश कवच : इसको सिद्ध करने से मृत्यु पर मिलेगी विजय

भगवान श्रीगणेश सभी जगहों पर अग्रपूजा के अधिकारी हैं. किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत श्रीगणेश की पूजा के साथ ही करने का विधान है. श्री गणेश की पूजा से धन धान्य और समस्त सुखों की प्राप्ति होती है. इसी प्रकार शास्त्रों में श्रीगणेश कवज का उल्लेख आता है. गणेश कवच को सिद्ध कर लेने […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 27, 2016 12:19 PM

भगवान श्रीगणेश सभी जगहों पर अग्रपूजा के अधिकारी हैं. किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत श्रीगणेश की पूजा के साथ ही करने का विधान है. श्री गणेश की पूजा से धन धान्य और समस्त सुखों की प्राप्ति होती है. इसी प्रकार शास्त्रों में श्रीगणेश कवज का उल्लेख आता है. गणेश कवच को सिद्ध कर लेने मात्र से मनुष्‍य मृत्यु पर भी विजय प्राप्त कर सकता है. शनैश्‍चरदेप के विनयपूर्ण आग्रह के बा भगवान श्रीविष्‍णु ने उन्हें गणेश कवज की दीक्षा दी. भगवान श्रीविष्‍णु ने कहा – दस लाख जप करने के बाद गणेश कवच सिद्ध हो जाता है.कवचसिद्ध कर लेने पर मनुष्‍य मृत्यु पर भी विजय प्राप्त करने में समर्थ हो जाता है. यह सिद्ध कवच धारण करने पर मनुष्‍य वाग्मी, चिरजीवी, सर्वत्र विजयी और पूज्य हो जाता है. इस मालामंत्र और कवच के प्रभाव से मनुष्‍य के सारे पातकोप पातक ध्‍वस्त हो जाते हैं. इस कवच के शब्द श्रवण मात्र से ही भूत-प्रेत, पिशाच, कूष्‍माण्‍ड, ब्रह्मराक्षस, डाकिनी, योगिनी, वेताल आदि बालग्रह, ग्रह तथा क्षेत्रपाल आदि दूर भाग जाते हैं. कवचधारी पुरुष को आधि (मानसिक रोग), व्याधि ( शारीरिक रोग), और भयप्रद शोक स्पर्श नहीं कर पाते. इस प्रकार सर्वविघ्‍नैकहरण गणेश कवच का महात्मय गान करके लक्ष्‍मीपति विष्‍णु सूर्यपुत्र शनैश्‍चर को कवच का उपदेश दिया –

गणेश कवच

संसारमोहनस्यास्य कवचस्य प्रजापति:।

ऋषिश्छन्दश्च बृहती देवो लम्बोदर: स्वयम्॥

धर्मार्थकाममोक्षेषु विनियोग: प्रकीर्तित:।

सर्वेषां कवचानां च सारभूतमिदं मुने॥

ॐ गं हुं श्रीगणेशाय स्वाहा मे पातुमस्तकम्।

द्वात्रिंशदक्षरो मन्त्रो ललाटं मे सदावतु॥

ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं गमिति च संततं पातु लोचनम्।

तालुकं पातु विध्नेशःसंततं धरणीतले॥

ॐ ह्रीं श्रीं क्लीमिति च संततं पातु नासिकाम्।

ॐ गौं गं शूर्पकर्णाय स्वाहा पात्वधरं मम॥

दन्तानि तालुकां जिह्वां पातु मे षोडशाक्षर:॥

ॐ लं श्रीं लम्बोदरायेति स्वाहा गण्डं सदावतु।

ॐ क्लीं ह्रीं विघन्नाशाय स्वाहा कर्ण सदावतु॥

ॐ श्रीं गं गजाननायेति स्वाहा स्कन्धं सदावतु।

ॐ ह्रीं विनायकायेति स्वाहा पृष्ठं सदावतु॥

ॐ क्लीं ह्रीमिति कङ्कालं पातु वक्ष:स्थलं च गम्।

करौ पादौ सदा पातु सर्वाङ्गं विघन्निघन्कृत्॥

प्राच्यां लम्बोदर: पातु आगन्य्यां विघन्नायक:।

दक्षिणे पातु विध्नेशो नैर्ऋत्यां तु गजानन:॥

पश्चिमे पार्वतीपुत्रो वायव्यां शंकरात्मज:।

कृष्णस्यांशश्चोत्तरे च परिपूर्णतमस्य च॥

ऐशान्यामेकदन्तश्च हेरम्ब: पातु चो‌र्ध्वत:।

अधो गणाधिप: पातु सर्वपूज्यश्च सर्वत:॥

स्वप्ने जागरणे चैव पातु मां योगिनां गुरु:॥

इति ते कथितं वत्स सर्वमन्त्रौघविग्रहम्।

संसारमोहनं नाम कवचं परमाद्भुतम्॥

श्रीकृष्णेन पुरा दत्तं गोलोके रासमण्डले।

वृन्दावने विनीताय मह्यं दिनकरात्मज:॥

मया दत्तं च तुभ्यं च यस्मै कस्मै न दास्यसि।

परं वरं सर्वपूज्यं सर्वसङ्कटतारणम्॥

गुरुमभ्य‌र्च्य विधिवत् कवचं धारयेत्तु य:।

कण्ठे वा दक्षिणेबाहौ सोऽपि विष्णुर्नसंशय:॥

अश्वमेधसहस्त्राणि वाजपेयशतानि च।

ग्रहेन्द्रकवचस्यास्य कलां नार्हन्ति षोडशीम्॥

इदं कवचमज्ञात्वा यो भजेच्छंकरात्मजम्।

शतलक्षप्रजप्तोऽपि न मन्त्र: सिद्धिदायक:॥

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