श्रावण विशेष : मां चंडी की पूजा से होती है मनोवांछित फल की प्राप्ति

शक्ति और शिव एक दूसरे के पूरक श्रावण के महीने में देवाधिदेव महादेव भगवान भोले शंकर की चर्चा हो और आद्या शक्ति माता चंडी की चर्चा नहीं हो तो यह कुछ अटपटा सा लगता है. शास्त्रों में भी वर्णित है कि शक्ति के बिना शिव शव के समान हैं, अर्थात माता की शक्ति से ही […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 28, 2016 11:28 AM

शक्ति और शिव एक दूसरे के पूरक

श्रावण के महीने में देवाधिदेव महादेव भगवान भोले शंकर की चर्चा हो और आद्या शक्ति माता चंडी की चर्चा नहीं हो तो यह कुछ अटपटा सा लगता है. शास्त्रों में भी वर्णित है कि शक्ति के बिना शिव शव के समान हैं, अर्थात माता की शक्ति से ही भगवान भोलेशंकर को शक्ति मिलती है. कथा महाभारत काल की है, जब गंगा पुत्र भीष्म जिन्हें इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था, उनकी मुलाकात महर्षि पुलत्स्य से हुई जो वेद के प्रकांड विद्वान थे. उनसे देवव्रत भीष्म ने माता चंडिका के पूजन के फलाफल व वर्णनकरने का आग्रह किया. इस पर महर्षि पुलत्स्य ने भीष्म को बताया कि माता चंडी की पूजा करने से स्वर्ग के सुख के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है. विस्तार पूर्वक कहा कि जो माता चंडिका का पूजन नित्य करता है उसके पुण्य का वर्णन स्वयं ब्रह्मा भी नहीं कर सकते. जो देवी का पूजन प्रतिदिन पुष्प, धूप, दीप, इत्र, फुलेल आदि विभिन्न द्रव्यों से करता है. वहीं लक्ष्मीवान होता है व उनके हाथ में ही मुक्ति होती है.

जो माता जगतजननी भगवती की पूर्णिमा व नवमी को क्षीर से स्नान कराता है, उसे वाजपेय यज्ञ के समान फल की प्राप्ति होती है. कार्तिक नवमी को माताचंडी की पूजा करने से हजार अश्वमेघ यज्ञ के समान फल प्राप्त होता है. प्रत्येक माह की नवमी तिथि को भगवती महामाया की पूजा करने से राजसूय यज्ञ के बराबर फल मिलता है, जो आश्विन माह में एक दिन नवमी मं दिन रात ताम्र पात्र से सुक्ष्म धारा के द्वारा घृत से देवी का अभिषेक करता है, उसके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं. कार्तिक पूर्णिमा युक्त सोमवार को देवी के पूजन करने से अराधक को सूर्यलोक की प्राप्ति होती है.

विल्व पत्रों की माला यागुग्गुल की माला से या विल्व पत्र से देवी की पूजा करते हैं उन्हें माता अमोघ फल देती है. माता चंडी देवी के पूजन में सब फुलों में नील कमल को श्रेष्ठ माना गया है. इससे पूजा करने पर माता चंडिका उन्हें मनोवांछित सिद्धि प्रदान करती है. महर्शि ने कहा जो कोई भी श्रद्धा से देवी मंदिर में नृत्य करता है, या देवी गीतों का गायन करता है व एकाग्रचित होकर बाध्य बजाता है. उसे देवी लोक की प्राप्ति होती है. जो कोई भी एक दिन पंचगव्य से मां को स्नान कराता है उन्हें माता सुरभि लोक में स्थान देती है.

उत्तरायण में उपवास कर देवी की पूजा करने से बहुधन के साथ बहु पूत्र प्राप्त करता है. तुला व मेष संक्रांति में उपवास कर मां चंडी की पूजा करने से मनुष्य बलवान व शक्तिवान होता है. चंद्रग्रहण व सूर्य ग्रहण में उपवास कर मां चंडिका देवी की पूजा करने से पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है. शास्त्रों में माता दुर्गा के दर्शन को सबसे पवित्र माना गया है. दर्शन, प्रणाम, वंदना, स्पर्श पूजन, स्पर्श लेपन, सर्वाधिक फलदायी होता है. मार्कण्डेय पुराण में कहा गया है कि अहिंसा की सावन रख कर देवी की पूजा करने से श्रेष्ठ फलदायी माना गया है.

इस क्रम में भीष्म से महर्षि पुलत्स्य ने कहा जब देवों ने दुर्गा पूजन के संबंध में ब्रम्हा जी से पूछा तो उन्होंने कहा था विष्णु, कुबेर, विश्वदेव, वायु, वसु,अश्विनी कुमार,वरुण, अग्नि, सूर्य, ग्रह, वारिज, पितर, पिशाच और भूत योनी क्रम से मंत्र शक्तिमयी, इंद्रमयी, देवमयी है. पीतल से बनी हुई कांस्य की प्रतिमा, स्फटिक से बनी प्रतिमा, ताम्र से बनी प्रवालमयी प्रतिमा, त्रपुसीमयी, लोहमयी, देवी की प्रतिमा का पूजन करने से परमगति को प्राप्त करता है.

मनीमयी देवी की पूजन से मनोवांछित फल प्रदान करती है. जो मानव नवमी काल में मांता चंडी की पूजा करते हैं उन्हें माता चंडी लोक प्रदान करती हैं. देवी को सफेद अगरू चढ़ाने से महाफल मिलता है. चंडिका विधान से देवी चंडी की पूजा करने से अभिष्ठ फल प्रदान करती है. एक श्लोक में कहा गया है ”दुर्गा शिवां शांति करी” स्त्रोत का पाठ करने से या उसका श्रवण करने से सभी पापों से छुटकारा पाकर माहमाया लोक में पूजित होता है.

Next Article

Exit mobile version