कृष्ण का प्रछन्न रूप

भगवान का अवतरण उनकी अंतरंगा शक्ति का प्राकट्य है. वे भौतिक शक्ति अर्थात माया के स्वामी हैं. भगवान का दावा है कि यद्यपि भौतिक शक्ति अत्यंत प्रबल है, किंतु वह उनके वश में रहती है और जो भी उनकी शरण ग्रहण कर लेता है, वह इस माया के वश से बाहर निकल आता है. यदि […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 4, 2016 1:42 AM
भगवान का अवतरण उनकी अंतरंगा शक्ति का प्राकट्य है. वे भौतिक शक्ति अर्थात माया के स्वामी हैं. भगवान का दावा है कि यद्यपि भौतिक शक्ति अत्यंत प्रबल है, किंतु वह उनके वश में रहती है और जो भी उनकी शरण ग्रहण कर लेता है, वह इस माया के वश से बाहर निकल आता है.
यदि कृष्ण का शरणागत जीव माया के प्रभाव से बाहर निकल सकता है तो भला परमेश्वर जो संपूर्ण विराट जगत का सृजन, पालन तथा संहारकर्ता है, हम लोगों जैसा शरीर कैसे धारण कर सकता है! अज्ञानी नहीं समझ सकते हैं कि सामान्य व्यक्ति के रूप में प्रकट होनेवाले भगवान कृष्ण समस्त परमाणुओं तथा इस विराट ब्रह्मांड के नियंता किस तरह हो सकते हैं. वृहत्तम तथा सूक्ष्मतम तो उनकी विचारशक्ति से परे होते हैं.
अत: वे सोच भी नहीं सकते कि मनुष्य जैसा रूप कैसे एक साथ विशाल को तथा अणु को वश में कर सकता है. यद्यपि कृष्ण असीम तथा ससीम को नियंत्रित करते हैं, किंतु वे इस जगत से विलग रहते हैं. उनके योगमैरम या अचिंत्य दिव्य शक्ति के विषय में कहा गया है कि वे एक साथ ससीम तथा असीम को वश में रख सकते हैं.
तो वे भी उनसे पृथक रहते हैं. यद्यपि मूर्ख लोग सोच भी नहीं पाते कि मनुष्य रूप में उत्पन्न होकर कृष्ण किस तरह असीम तथा ससीम को वश में कर सकते हैं, किंतु जो शुद्ध भक्त हैं, वे इसे स्वीकार करते हैं, क्योंकि उन्हें पता है कि कृष्ण भगवान हैं. अत: वे पूर्णतया उनकी शरण में जाते हैं और कृष्ण भावनामृत में रह कर कृष्ण की भक्ति में अपने को रत रखते हैं. सगुणवादियों तथा निर्गुणवादियों में भगवान के मनुष्य रूप में प्रकट होने को लेकर काफी मतभेद हैं.
किंतु यदि हम भगवद्गीता तथा श्रीमद्भागवद जैसे प्रामाणिक ग्रंथों का अनुशीलन कृष्णतत्व समझने के लिए करें, तो समझ सकते हैं कि कृष्ण श्रीभगवान हैं. यद्यपि वे इस धराधाम में सामान्य व्यक्ति की भांति प्रकट हुए थे, किंतु वे सामान्य व्यक्ति नहीं हैं. श्रीमद्भागवद में शौनक आदि मुनियों ने सूत गोस्वामी से कृष्ण के कार्यकलापों के बारे में पूछा, तो उन्होंने कहा- भगवान श्रीकृष्ण ने बलराम के साथ-साथ मनुष्य की भांति क्रीड़ा की और इस तरह प्रच्छन्न रूप में उन्होंने अनेक अति मानवीय कार्य किये.
– स्वामी प्रभुपाद

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