परमात्म तत्व से ऐक्य

इस संसार में जब एक व्यक्ति अपने वास्तविक स्वरूप को समझ लेता है, तब उसका संबंध परमात्म तत्व से प्रकट हो जाता है. लोग उस व्यक्ति को अवतार, ऋषि, योगी आदि के रूप में पूजने और मनन करने लगते हैं. तब वह दिव्य पुरुष बन जाता है. परमात्म तत्व वह अनंत जीवन, वह सर्वव्यापी चैतन्य […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 5, 2016 5:57 AM

इस संसार में जब एक व्यक्ति अपने वास्तविक स्वरूप को समझ लेता है, तब उसका संबंध परमात्म तत्व से प्रकट हो जाता है. लोग उस व्यक्ति को अवतार, ऋषि, योगी आदि के रूप में पूजने और मनन करने लगते हैं. तब वह दिव्य पुरुष बन जाता है. परमात्म तत्व वह अनंत जीवन, वह सर्वव्यापी चैतन्य और वह सर्वोपरि सत्ता है, जो इस जगत के पीछे अदृश्य रूप से काम करती है और इसका नियमन करती है. इसी अनंत, असीम और अनादि ज्ञान और शक्ति के भंडार से संबंध स्थापित हो जाने से साधारण मनुष्य असाधारण बन कर अपने वास्तविक स्वरूप का ज्ञाता हो जाता है. अणु-अणु का मूलाधार वह परमात्म तत्व ही है, जिससे सब कुछ बनता है और उसी चेतन शक्ति से गतिशील होता है.

आकार-प्रकार में भिन्न दिखते हुए भी प्रत्येक पदार्थ एवं प्राणी एक उसी तत्व का अंश है. जिस प्रकार समुद्र से उठाया हुआ एक जल बिंदु भिन्न दिखता हुआ भी मूलत: उसी का संक्षिप्त स्वरूप है, उसी प्रकार व्यक्तिगत जीवन और समष्टिगत जीवन सीमित और असीमित के मिथ्या के भेद के साथ तत्वत: एक ही है. जीवात्मा ही परमात्मा है और परमात्मा ही जीवात्मा है.

इस सत्य को जानना ही आत्मज्ञान है. जिन महापुरुषों ने आत्मज्ञान की प्राप्ति कर ली है, उन्होंने अपना अनुभव प्रकट करते हुए उसकी इस प्रकार पुष्टि की है कि हम अपना जीवन परमात्म तत्व से एक दिव्य प्रवाह के रूप में पाते हैं अथवा हमारे जीवन का उस परमात्म तत्व से ऐक्य है. हममें और परमात्मा में कोई भेद नहीं है. प्रतीति के साथ शक्ति का अटूट संबंध है, जिसे अपने प्रति सर्वशक्तिमान की प्रतीति होती है. अपने प्रति इस प्रतीति की स्थापना करने का प्रयास ही आत्मज्ञान की ओर अग्रसर होना है.

जिसका उपाय आत्म चिंतन के अलावा कुछ और नहीं हो सकता. जब यह चिंतन अभ्यास पाते-पाते अविचल, असंदिग्ध, अतर्क और अविकल्प हो जाता है, तभी मनुष्य में आत्मज्ञान का दिव्य प्रकाश विकीर्ण हो जाता है और वह साधारण से असाधारण, सामान्य से दिव्य और व्यष्टि से समष्टि रूप होकर संसार के लिए आचार्य, योगी या अवतार रूप हो जाता है. आत्मज्ञान ही मनुष्य का सर्वोच्च लक्ष्य है.

-पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य

Next Article

Exit mobile version