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क्या आप जानते हैं! 8 प्रकार की होती है शिव प्रतिमा

देवाधिदेव महादेव की महिमा को कोई भी शब्द के दायरे में नहीं बांध सकता है. सर्वव्यापी व लोक कल्याणकारी देव को सभी विधाओं व विद्याओं के स्रष्टा पौराणिक ग्रंथों में कहे गये हैं. वैदिक ग्रंथों में भगवान शिव को विद्या का प्रधान देवता कहा गया है. हिन्दू धर्म में मान्यता है की भगवान शिव इस […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 16, 2016 1:44 PM

देवाधिदेव महादेव की महिमा को कोई भी शब्द के दायरे में नहीं बांध सकता है. सर्वव्यापी व लोक कल्याणकारी देव को सभी विधाओं व विद्याओं के स्रष्टा पौराणिक ग्रंथों में कहे गये हैं. वैदिक ग्रंथों में भगवान शिव को विद्या का प्रधान देवता कहा गया है. हिन्दू धर्म में मान्यता है की भगवान शिव इस संसार में आठ रूपों में समाए हैं, जो इस प्रकार हैं – शर्व, भव, रुद्र, उग्र, भीम, पशुपति, ईशान और महादेव. इसी आधार पर धर्मग्रंथों में शिव जी की मूर्तियों को भी आठ प्रकार का बताया गया है. आईए भगवान शिव के इन आठ मूर्ति रूपों के बारे में थोड़ा विस्तार से जानते है.

1. शर्व – पूरे जगत को धारण करने वाली पृथ्वीमयी मूर्ति के स्वामी शर्व है, इसलिए इसे शिव की शार्वी प्रतिमा भी कहते हैं. सांसारिक नजरिए से शर्व नाम का अर्थ और शुभ प्रभाव भक्तों के हर को कष्टों को हरने वाला बताया गया है.

2. भीम – यह शिव की आकाशरूपी मूर्ति है, जो बुरे और तामसी गुणों का नाश कर जगत को राहत देने वाली मानी जाती है. इसके स्वामी भीम हैं. यह भैमी नाम से प्रसिद्ध है. भीम नाम का अर्थ भयंकर रूप वाले भी हैं, जो उनके भस्म से लिपटी देह, जटाजूटधारी, नागों की हार पहनने से लेकर बाघ की खाल धारण करने या आसन पर बैठने सहित कई तरह से उजागर होता है.

3. उग्र – वायु रूप में शिव जगत को गति देते हैं और पालन-पोषण भी करते हैं. इसके स्वामी उग्र है, इसलिए यह मूर्ति औग्री के नाम से भी प्रसिद्ध है. उग्र नाम का मतलबबहुत ज्यादा उग्र रूप वाले होना बताया गया है. शिव के तांडव नृत्य में भी यह शक्ति स्वरूप उजागर होता है.

4. भव – जल से युक्त शिव की मूर्ति पूरे जगत को प्राणशक्ति और जीवन देने वाली है. इसके स्वामी भव है, इसलिए इसे भावी भी कहते हैं. शास्त्रों में भी भव नाम का मतलब पूरे संसार के रूप में ही प्रकट होने वाले देवता बताया गया है.

5. पशुपति – यह सभी आंखों में बसी होकर सभी आत्माओं का नियंत्रक है. यह पशु यानी दुर्जन वृत्तियों का नाश और उनसे मुक्त करने वाली होती है. इसलिए इसे पशुपति भी कहा जाता है. पशुपति नाम का मतलब पशुओं के स्वामी बताया गया है, जो जगत के जीवों की रक्षा व पालन करते हैं.

6. रुद्र – यह शिव की अत्यंत ओजस्वी मूर्ति है, जो पूरे जगत के अंदर-बाहर फैली समस्त ऊर्जा व गतिविधियों में स्थित है. इसके स्वामी रूद्र हैं. इसलिए यह रौद्री नाम से भी जानी जाती है. रुद्र नाम का अर्थ भयानक भी बताया गया है, जिसके जरिए शिव तामसी व दुष्ट प्रवृत्तियों पर नियंत्रण रखते हैं.

7. ईशान- शिव की मूर्ति यह सूर्य रूप में आकाश में चलते हुए जगत को प्रकाशित करती है. शिव की यह दिव्य मूर्ति ईशान कहलाती है. ईशान रूप में शिव ज्ञान व विवेक देने वाले बताए गए हैं.

8. महादेव – चन्द्र रूप में शिव की यह साक्षात मूर्ति मानी गई है. चन्द्र किरणों को अमृत के समान माना गया है. चन्द्र रूप में शिव की यह मूर्ति महादेव के रूप में प्रसिद्ध है. इस मूर्ति का रूप अन्य से व्यापक है. महादेव नाम का अर्थ देवों के देव होता है. यानी सारे देवताओं में सबसे विलक्षण स्वरूप व शक्तियों के स्वामी शिव ही हैं.

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