बोध का पदार्पण

महात्मा बुद्ध के शिष्य हुए बोधिधर्म. बुद्ध के शरीर छोड़ देने के बहुत समय बाद बोधिधर्म बुद्ध के ज्ञान का उपदेश देने के लिए चीन की ओर गये. जहां वे पहुंचे, वहां के राजा ने उनका सत्कार किया. बोधिधर्म ने कुछ दिन वहां बिताये. उसके बाद पहाड़ की एक कंदरा में रहने लग गये. वे […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 30, 2016 11:49 PM

महात्मा बुद्ध के शिष्य हुए बोधिधर्म. बुद्ध के शरीर छोड़ देने के बहुत समय बाद बोधिधर्म बुद्ध के ज्ञान का उपदेश देने के लिए चीन की ओर गये. जहां वे पहुंचे, वहां के राजा ने उनका सत्कार किया. बोधिधर्म ने कुछ दिन वहां बिताये. उसके बाद पहाड़ की एक कंदरा में रहने लग गये.

वे बहुत लोगों को मिले, बहुत से सूत्रों का प्रचार भी किया. उपदेश भी दिया, पर कुछ ही दिन में वे इस कंदरा में दीवार की ओर मुंह करके बैठ गये. बोधिधर्म को कोई मिलने जाता, तो ऐसे ही बैठे रहते. किसी से बात ही न करते थे. एक दिन वहां के राजा ने पूछा- ‘आप हमसे बात भी नहीं कर रहे, हमारी तरफ मुंह भी नहीं कर रहे?’ बोधिधर्म ने कहा- ‘मैं ऐसे शिष्य का इंतजार कर रहा हूं, जिसको मैं अपना बोध दे सकूं. जब तक वह शिष्य यहां नहीं आयेगा, तब तक मैं दीवार को देखता रहूंगा.’ छह साल तक वे दीवार की ओर मुंह करके बैठे रहे. छह साल के बाद एक युवक आया, जिसका नाम था हुइमैंग. इसने आकर प्रणाम किया और बैठ गया, पर बोधिधर्म ने उसकी ओर पलट कर देखा भी नहीं. हुइमैंग ने कहा- ‘गुरुवर! मैं आपके पास कुछ लेने आया हूं, कुछ देने आया हूं.

लेने आया हूं आपका सर्वस्व और देने आया हूं अपना सर्वस्व. सौदा न घाटे का है, न नफे का है. बोधिधर्म फिर भी नहीं पलटे. यह देख उस नौजवान ने कहा कि ‘अब अगर नहीं पलटोगे, तो मैं अपना हाथ काट दूंगा.’ बोधिधर्म फिर भी नहीं पलटे. उसने हाथ काट दिया. बोधिधर्म अभी भी नहीं पलटे. हुइमैंग ने कहा- ‘गुरुवर! अगर अब आप नहीं पलटे, तो अगली बार मैं अपनी गर्दन काट दूंगा, क्योंकि उस जीवन का भी क्या फायदा, जिस जीवन में बोध नहीं है. उस जीवन का भी क्या लाभ, जिसमें समाधि नहीं है.’

जब हुइमैंग ने तलवार उठायी, तब बोधिधर्म पलटे और बोले- ‘बस! इतनी दूर कठिन यात्रा करके आया हूं, जिसके लिए, आज तुम आये हो, तो अब रहो मेरे पास. मेरे सान्निध्य में रहो.’ हुइमैंग ही बोधिधर्म का एकमात्र शिष्य हुआ. जैसे दीपक से ज्योति उछल कर अनजले दीपक के पास पहुंच जाती है, इसी तरह से बोधिधर्म का बोध हुइमैंग को मिल गया. इस तरह से ही गुरु का बोध शिष्य की ओर पदार्पण होता है.-आनंदमूर्ति गुरु मां

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