सृजन करो, प्रसन्न रहो

प्रसन्नता सृजनात्मकता की ही उपज है. केवल सृजनात्मक व्यक्ति ही प्रसन्न होते हैं. किसी भी चीज का सर्जन करो, तुम प्रसन्नता का अनुभव करोगे. तुम एक बगीचे का निर्माण करो और बगीचे में कोंपलें लगने दो, तब तुम देखोगे कि तुम्हारे अंदर भी कोंपल उगने लगेगी. कोई पेंटिंग बनाओ, तब तुम्हारे अंदर भी पेंटिंग के […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 6, 2016 5:22 AM
प्रसन्नता सृजनात्मकता की ही उपज है. केवल सृजनात्मक व्यक्ति ही प्रसन्न होते हैं. किसी भी चीज का सर्जन करो, तुम प्रसन्नता का अनुभव करोगे. तुम एक बगीचे का निर्माण करो और बगीचे में कोंपलें लगने दो, तब तुम देखोगे कि तुम्हारे अंदर भी कोंपल उगने लगेगी.
कोई पेंटिंग बनाओ, तब तुम्हारे अंदर भी पेंटिंग के साथ-साथ कुछ बनने लगेगा. जैसे ही पेंटिंग में आखिरी रंग भरते हो, तब तुम देखोगे कि अब तुम वही व्यक्ति नहीं रहे. तब तुम उस आखिरी रंग में वह भी भर रहे हो, जो तुम्हारे अंदर नितांत नया है. कोई कविता लिखो, कोई गीत गुनगुनाओ, नृत्य में डूबो और फिर देखो: तुम प्रसन्न होने लगोगे. अस्तित्व ने तुम्हें सृजनात्मक होने का मात्र एक अवसर दिया है: जीवन केवल सृजनात्मक होने का ही अवसर है. अगर तुम सृजनात्मक हो, तुम प्रसन्न रहोगे. अगर तुम किसी पहाड़ की सबसे ऊंची चोटी पर चढ़ना चाहते हो, तब यह बहुत ही कठिन है.
और जब तुम पहाड़ी की चोटी पर पहुंचते हो और तुम लेट जाते हो, बादलों के साथ फुसफुसाते हुए, आकाश को देखते हुए, आनंद जो तुम्हारे हृदय में भर जाता है- वही आनंद तुम्हें तब आता है, जब तुम सृजनात्मकता की किसी ऊंचाई पर पहुंचते हो. प्रसन्न होने के लिए बुद्धिमत्ता की जरूरत है, और लोगों को बुद्धिहीन होने को ही शिक्षित किया गया है.
समाज हमारी बुद्धिमत्ता को खिलने नहीं देना चाहता. समाज को बुद्धिमत्ता की आवश्यकता ही नहीं है, वास्तव में उसे बुद्धिमत्ता से डर लगता है. समाज को मूर्ख लोगों की जरूरत होती है. क्यों? इसलिए कि मूर्खों को नियंत्रित किया जा सकता है. और यह जरूरी नहीं कि बुद्धिमान व्यक्ति आज्ञाकारी हो, वे आज्ञा मान भी सकते हैं और नहीं भी मान सकते. लेकिन, बुद्धिहीन व्यक्ति आज्ञा का उल्लंघन नहीं करता. वह हमेशा से ही नियंत्रण में रहने को तैयार रहता है.
बुद्धिहीन व्यक्ति को हमेशा ही किसी ऐसे व्यक्ति की आवश्यकता होती है, जो उस पर नियंत्रण रख सके, क्योंकि उसके पास स्वयं के जीवन जीने की भी समझ नहीं होती. वह चाहता है कि कोई हो, जो उसे निर्देशित कर सके, वह हमेशा ही उस व्यक्ति की खोज में रहता है, जो उस पर शासन कर सके.
-आचार्य रजनीश ओशो

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