एक बुद्धिमान व्यक्ति के पास चार तकनीक होती है, जो आंतरिक और ब्राह्य दोनों ही है- साम, दाम, भेद और दंड. लोगों से व्यवहार के लिए बुद्धिमत्तापूर्ण जीवन जीने के लिए, पहली तकनीक साम है- जिसका अर्थ है शांति और समझदारी भरा मार्ग. जब यह तकनीक काम ना करे, तो आप दूसरी तकनीक पर जायें, जिसे दाम कहते हैं. इसका अर्थ है इसे होने देना, क्षमा कर देना, स्थान देना. यदि लोग आपकी उदारता को नहीं पहचान पाते हैं, तो तीसरी तकनीक भेद काम में आती है. इसका अर्थ है तुलना करना, दूरी उत्पन्न करना. यदि कोई व्यक्ति आपसे उलझता है, तो पहले आप उस से बात करें. यदि इस से बात नहीं बने, तो प्रेम से उनकी उपेक्षा कर दें. उन्हें स्वयं ही समझने का अवसर दें.
आपकी उदारता और उपेक्षा उनको उनकी गलती का अनुभव करवा देगी. लेकिन, यदि वे उस पर ध्यान नहीं दे, तो उनसे भेद कर लें और उनसे दूरी बना लें. यदि वहां पर दो व्यक्ति है, तो आप उनमें एक के थोड़ा करीब हो जायें. ऐसा करने से दूसरे व्यक्ति को अपनी गलती का अनुभव हो जायेगा. यदि अब भी कोई बात नहीं बनी तो अंतिम है- दंड यानी डंडा. यही चारों तरीके आप अपने स्वयं के साथ भी अपनायें. आंतरिक जीवन के लिए यह उसी तरह एक के बाद एक नहीं आते हैं. साम- समानता बनाना. यदि सुखद क्षण आ रहे हैं, तो उनको देखें. यदि दुखद क्षण आ रहे हैं, तो उनको भी देखें. अपने में समानता रखें.
दाम का अर्थ छोड़ देना. उनको छोड़ देना जो आपको विघ्नता दे रहे हैं. इसका अर्थ है, वे बातें जो आपके मन को दुख पहुंचानेवाली हैं, समस्याएं और परेशान करनेवाली हैं, उन बातों को समर्पित कर देना. मन कहता है, ‘यह आपने अच्छा किया.’ तो आप खुशी से उछलने लगते हैं और जब मन कहता है, ‘यह गलत काम किया.’ तो आप नीचे बैठ जाते हैं.
लेकिन यह नकारात्मक स्थिति हमेशा नहीं रहती है. अच्छे कार्य आपको सुखद अनुभव देते हैं. मगर कुछ समय बाद वे भी गायब हो जाते हैं. हर कार्य और उसका फल समाप्त हो जाता है. ये हमेशा नहीं रहनेवाले. इसलिए जब आपका मन इधर-उधर भागे, तो उसे भागने दो. इसे पकड़ कर मत बैठो. इसके पीछे जाओ और इसे वापस लाओ.-श्री श्री रविशंकर