शुद्ध शारीरिक विकास

सौर प्रणाली जिस तरह घूमती है, उससे यह तय होता है कि शरीर कैसा होगा और सौर प्रणली में जो भी होता है, वह शरीर में भी होता है. आदियोगी ने कहा था कि शरीर एक ऐसे बिंदु तक विकसित हो चुका है, जहां आगे विकास संभव नहीं है, जब तक कि सौर प्रणाली में […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 28, 2016 4:57 AM

सौर प्रणाली जिस तरह घूमती है, उससे यह तय होता है कि शरीर कैसा होगा और सौर प्रणली में जो भी होता है, वह शरीर में भी होता है. आदियोगी ने कहा था कि शरीर एक ऐसे बिंदु तक विकसित हो चुका है, जहां आगे विकास संभव नहीं है, जब तक कि सौर प्रणाली में कोई बुनियादी बदलाव नहीं होता.

आज के न्यूरोसाइंटिस्टों का यह कहना विचित्र है कि मानव मस्तिष्क और आगे विकसित नहीं हो सकता. एक मनुष्य फिलहाल जितना कुशाग्रबुद्धि है, उससे अधिक नहीं हो सकता. वह सिर्फ अपने मस्तिष्क का बेहतर इस्तेमाल कर सकता है, उसे और विकसित नहीं कर सकता, क्योंकि ऐसा करने के लिए या तो न्यूरॉन का आकार बढ़ाना होगा या मस्तिष्क में न्यूरॉन की संख्या को बढ़ाना होगा. अगर आप न्यूरॉन का आकार बढ़ाते हैं, तो उसमें लगनेवाली वायरिंग टिकाऊ नहीं होगी, क्योंकि उसमें बहुत ऊर्जा लग जायेगी. अगर आप न्यूरॉन की संख्या बढ़ाते हैं, तो उनके बीच परस्पर संपर्क में सामंजस्य या तालमेल नहीं होगा. मनुष्य सिर्फ अधिक सामंजस्य उत्पन्न करते हुए अधिक बुद्धिमान हो सकता है.

यदि ऐसा किया गया, तो व्यक्ति अधिक बुद्धिमान प्रतीत होगा, लेकिन असल में यह सिर्फ बेहतर उपयोग है. मस्तिष्क में वृद्धि कभी नहीं होती, क्योंकि भौतिक नियम हमें इससे आगे जाने नहीं देंगे. लेकिन शारीरिक रूपांतरण या विकास इकलौता विकास नहीं है. शुद्ध शारीरिक विकास केवल पहला चरण है. शारीरिक विकास के बाद, विकास की प्रक्रिया शारीरिक से दूसरे आयामों में चली जाती है. जानवर से मनुष्य तक विभिन्न आयामों में विकास हुआ है. सबसे ऊपर, बुनियादी जागरूकता विकसित हुई है. पूरी योगिक प्रक्रिया जागरूकता लाने से जुड़ी है. आध्यात्मिकता का समूचा महत्व आपको एक जागरूक प्रक्रिया में अधिक-से-अधिक लाने के उसके विभिन्न तरीकों में है. सर्कस कलाकार बनना चाहते हैं. मगर मूल रूप से इसका महत्व यह है कि आपके शरीर के स्वेच्छा से काम करनेवाले अंग को भी एक जागरूक प्रक्रिया में लाया जा सकता है, जहां आप तय करते हैं कि आपका दिल किस गति से धड़केगा. वह अब एक स्वैच्छिक प्रक्रिया नहीं रह जाता.

– सद्गुरु जग्गी वासुदेव

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