जानें धार्मिक परंपराओं के महत्व को

आधुनिक युग में कई लोग ऐसा सोचते हैं कि परंपराएं मात्र लोगों को डराने या कमजोर बनाने के लिए गढ़ी गयी हैं. यह सच नहीं है. जो लोग ऐसा सोचते हैं, उन्हें इन परंपराओं के पीछे निहित वैज्ञानिक महत्व को जानने व समझने की जरूरत है. भारतीय संस्कृति में परंपराओं का काफी महत्व है. प्राचीन […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 30, 2016 7:52 AM

आधुनिक युग में कई लोग ऐसा सोचते हैं कि परंपराएं मात्र लोगों को डराने या कमजोर बनाने के लिए गढ़ी गयी हैं. यह सच नहीं है. जो लोग ऐसा सोचते हैं, उन्हें इन परंपराओं के पीछे निहित वैज्ञानिक महत्व को जानने व समझने की जरूरत है.

भारतीय संस्कृति में परंपराओं का काफी महत्व है. प्राचीन काल से ही ऋषि-मुनियों द्वारा इनके पालन पर विशेष बल दिया जाता रहा है. ऐसा केवल इसलिए नहीं कि वे भारतीय संस्कृति की समृद्धता और वैभव को दुनिया के सामने लाना चाहते थे, बल्कि इसलिए क्योंकि उनके पीछे कई सारे वैज्ञानिक कारण निहित हैं, जो कि मानसिक व शारीरिक स्वास्थ पर सकारात्मक प्रभाव डालते हैं. आज संपूर्ण विश्व भारतीय परंपरा और संस्कृति के इस वैज्ञानिक दृष्टिकोण को स्वीकार कर चुका है. आप भी जानिए उनके बारे में.

तुलसी के पौधे में जल डालना

तुलसी के पौधा एक एंटी-बायोटिक मेडिसिन होता है. इसके सेवन से शरीर के प्रतिरोधक क्षमता में बढोतरी होती है. बीमारियां दूर भागती हैं और शारीरिक द्रव्यों का संतुलन बना रहता है. इसके अलावा, तुलसी का पौधा अगर घर में हो, तो घर में मच्छर, मक्खी, सांप आदि के आने का खतरा नहीं होता.

दोनों हाथ जोड़ कर अभिभावादन करना

सामान्यत: दोनों हाथ जोड़ कर किसी को ‘नमस्ते’ कहने का अर्थ है कि आप सामनेवाले व्यक्ति को आदर दे रहे हैं. वैज्ञानिक दृष्टि से देंखे, तो इस मुद्रा में हमारी ऊंगलियों के शिरोबंदुओं (टिप्स) का मिलान होता है. यहां पर आंख, कान और मस्तिष्क के प्रेशर प्वाइंट्स होते हैं. दोनों हाथ जोड़ने के क्रम में इन बिंदुओं पर दबाव पड़ता है. इससे संवेदी चक्र प्रभावित होते है, जिसकी वजह से हम उस व्यक्ति को अधिक समय तक याद रख पाते हैं. साथ ही, किसी तरह का शारीरिक संपर्क न होने से कीटाणुओं के संक्रमण का खतरा भी नहीं रहता.

सूर्य नमस्कार

प्राचीन वेदों एवं शास्त्रों में सूर्य को ब्रह्मांड की समस्त ऊर्जा का प्रतीक माना गया है. हिंदू मान्यतानुसार सुबह-सवेरे सूर्य की दिशा में मुंह करके जल अर्पित करने की क्रिया को महत्वपूर्ण माना गया है. प्रात:कालीन सूर्य की किरणें हमारी आंखों और हमारे शरीर के ऊर्जा चक्र को एक्टिवेट करने में सहायक होती है.

पीपल में जल डालना

पीपल का पेड़ सबसे ज्यादा ऑक्सीजन का उत्पादन करता है. जहां अन्य पेड़-पौधे रात के समय में कार्बन डाइ ऑक्साइड गैस का उत्सर्जन करते हैं, वहीं पीपल का पेड़ रात में भी अधिक मात्रा में ऑक्सीजन मुक्त करता है. इसी वजह से बड़े-बुजुर्गों ने इसके संरक्षण पर विशेष बल दिया है. पुराने जमाने में लोग रात के समय पीपल के पेड़ के नजदीक जाने से मना करते थे. उनके अनुसार पीपल में बुरी आत्माओं का वास होता है, जबकि सच तो यह है कि ऑक्सीजन की अधिकता के कारण मनुष्य को दम घुटने का अहसास होता है.

नदी में सिक्का फेंकना

पुराने जमाने में ऐसा करने का मतलब अपने पूर्वजों को श्रद्धांजलि देना होता था. उस समय तांबे या चांदी के सिक्कों का चलन था. वैज्ञानिक दृष्टि से तांबा या चांदी हमारे शरीर के लिए लाभदायक धातु है. इस परंपरा का मूल उद्देश्य जल में इन धातुओं की मात्रा को बढाना या बनाये रखना था. जो लोग अब भी ऐसा करते हैं, उन्हें यह जानना चाहिए कि आजकल स्टेनलेस स्टील के सिक्कों का प्रचलन है. इनमें कई तरह के अन्य रासायनिक धातु मिक्स होते हैं. ये स्वास्थ की दृष्टि से हानिकारक हैं. इसलिए अब ऐसा करना उचित नहीं है.

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