शारदीय नवरात्र, चौथा दिन : कूष्माण्डा दुर्गा का ध्यान

रूधिर से परिप्लुत एवं सुरा से परिपूर्ण कलश को दोनों करकमलों में धारण करनेवाली कूष्मांडा दुर्गा मेरे लिए शुभदायिनी हों. संपूर्ण जगत देवीमय है -4 नवरात्र की चतुर्थी तिथि को देवी के कूष्मांडा स्वरूप की पूजा और आराधना की जाता है. इस तिथि को नैवेद्य के रूप में मक्खन, शहद और मालपुआ देवी को अर्पित […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 5, 2016 6:26 AM

रूधिर से परिप्लुत एवं सुरा से परिपूर्ण कलश को दोनों करकमलों में धारण करनेवाली कूष्मांडा दुर्गा मेरे लिए शुभदायिनी हों.

संपूर्ण जगत देवीमय है -4

नवरात्र की चतुर्थी तिथि को देवी के कूष्मांडा स्वरूप की पूजा और आराधना की जाता है. इस तिथि को नैवेद्य के रूप में मक्खन, शहद और मालपुआ देवी को अर्पित करें. इससे मां प्रसन्न हो कर सभी विघ्न नाश करके सुख-समृद्धि प्रदान करती हैं. बुद्धि का विकास होता है. मां की कृपा से निर्णय-शक्ति में असाधारण विकास होता है. देवी ने स्वयं कहा है-संसार के समस्त जीवों में स्पंदन-क्रिया मेरी ही शक्ति से होती है. यह निश्चय है कि मेरे अभाव में वह नहीं हो सकती. मेरे बिना शिव दैत्यों का संहार नहीं कर सकते.

या देवी सर्वभुतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता-शास्त्रों में शक्ति शब्द के प्रसंगानुसार अलग-अलग अर्थ किये गये हैं. तांत्रिक लोग इसी को पराशक्ति कहते हैं और इसी को विज्ञानानंदघन ब्रह्म मानते हैं. वेद, शास्त्र, उपनिषद्, पुराण आदि में भी शक्ति शब्द का प्रयोग देवी, पराशक्ति, ईश्वरी, मूल प्रकृति आदि नामों से विज्ञाननंदघन निर्गुण ब्रह्म एवं सगुण ब्रह्म के लिए भी किया गया है. विज्ञाननंदघन ब्रह्म का तत्व अत्यंत सूक्ष्म एवं गुह्य होने के कारण शास्त्रों में उसे नाना प्रकार से समझाने की चेष्टा की गयी है. इसलिए शक्ति नाम से ब्रह्म की उपासना करने से भी परमात्मा की ही प्राप्ति होती है. एक ही परमात्मतत्व की निर्गुण, सगुण, निराकार, साकार, देव, देवी, ब्रह्मा, विष्णु, शिव,शक्ति,राम,कृष्ण आदि अनेक नाम-रूप से भक्त लोग पूजा-उपासना करते हैं. वह विज्ञाननंदघन स्वरूपा महाशक्ति निर्गुणरूपा देवी जीवों पर दया करके स्वयं ही सगुणभाव को प्राप्त होकर ब्रह्मा, विष्णु और महेश रूपसे उत्पत्ति, पालन और संहार-कार्य करती हैंं.

स्वयं भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं—तुम्हीं विश्वजननी मूलप्रकृति ईश्वरी हो, तुम्हीं सृष्टि की उत्पत्ति के समय आद्याशक्ति के रूप में विराजमान रहती हो और स्वेच्छा से त्रिगुणात्मिका बन जाती हो. यद्यपि वस्तुतः तुम स्वयं निर्गुण हो, तथापि प्रयोजनवश सगुण हो जाती हो. तुम परब्रह्मस्वरूप, सत्य, नित्य एवं सनातनी हो. परमतेजस्वरूप और भक्तों पर अनुग्रह करने के हेतु शरीर धारण करती हो. तुम सर्वस्वरूपा, सर्वेश्वरी, सर्वाधारा एवं परात्पर हो. तुम सर्वबीजस्वरूपा, सर्वपूज्या एवं आश्रयरहिता हो. तुम सर्वज्ञ, सर्व प्रकार से मंगल करनेवाली एवं सर्व मंगलों की भी मंगल हो.

(क्रमशः)

प्रस्तुतिः-डॉ.एन.के.बेरा

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