आध्यात्मिक मार्ग

प्रारंभ में ऐसा लग सकता है कि आध्यात्मिक मार्ग कठिन, खतरनाक एवं फिसलनभरा है. शुरू में वस्तुओं का त्याग दुखदायी होता है. किंतु यदि आप दृढ़ संकल्प ले लेते हैं और आध्यात्मिक मार्ग पर चलने हेतु निरंतर प्रयास करते हैं, तो यह कार्य बहुत आसान हो जाता है. अपने प्रयास में आप रुचि लेने लगते […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 17, 2016 5:34 AM

प्रारंभ में ऐसा लग सकता है कि आध्यात्मिक मार्ग कठिन, खतरनाक एवं फिसलनभरा है. शुरू में वस्तुओं का त्याग दुखदायी होता है. किंतु यदि आप दृढ़ संकल्प ले लेते हैं और आध्यात्मिक मार्ग पर चलने हेतु निरंतर प्रयास करते हैं, तो यह कार्य बहुत आसान हो जाता है. अपने प्रयास में आप रुचि लेने लगते हैं तथा एक नये आनंद का अनुभव करते हैं. आपके हृदय का विस्तार होता है तथा जीवन के प्रति आप एक नया, व्यापक दृष्टिकोण प्राप्त करते हैं. आप अपने हृदय-स्थित अंतर्यामी के अदृश्य हाथों के सहारे का भी अनुभव करते हैं. आपके सभी प्रश्नों का उत्तर अपने अंदर से ही मिलने लगता है तथा समस्त प्रकार के संदेह स्वत: दूर होते जाते हैं. आप दिव्य आनंद की अनुभूति से भावविह्वल हो जाते हैं. आप गहरी शांति का अनुभव करते हैं. आपको नया सामर्थ्य प्राप्त होता है.

आध्यात्मिक मार्ग पर आपके कदम अधिकाधिक दृढ़ होने लगते हैं. सर्वोच्च ब्राह्मी चेतना एवं सामान्य मानवीय चेतना के बीच चेतना के अनेक स्तर होते हैं. अंतिम लक्ष्य तक पहुंचने के पूर्व विभिन्न परदों को हटाना, कई निम्नतर केंद्रों को खोलना तथा अनेक बाधाओं को पार करना होता है. शाश्वत आनंद के आयाम में पहुंचने के लिए कोई राजमार्ग नहीं है.

आपको प्रयासरत रहते हुए अनेक पर्वतों पर चढ़ना है. आप एक छलांग में एवरेस्ट के शिखर पर नहीं चढ़ सकते. आध्यात्मिक मार्ग में छलांग लगाने की संभावना भी नहीं है, न ही आधे-अधूरे प्रयास से काम चल सकता है. यहां कड़ा, कठोर अनुशासन आवश्यक है. तभी आप माया पर विजय एवं मन पर नियंत्रण प्राप्त कर सकते हैं. संत-महात्मा ऐसा कभी नहीं सोचते कि उन्होंने अपने मन को नियंत्रित कर लिया है. केवल भ्रमित साधक सोचता है कि उसने अपने मन पर विजय प्राप्त कर ली है. अंत में उसका भयंकर पतन होता है.

जीवन, मन एवं प्रकृति का यह स्वभाव है कि वे सतत् गतिशील रहते हैं. जब मन में यह विचार रहता है कि उच्चतम अवस्था अभी प्राप्त नहीं हुई है, तब आप निरंतर उसकी ओर बढ़ते हैं. यदि आप मान लेंगे कि आप उपलब्धि के शिखर पर पहुंच गये हैं, तो आप गतिशील तो रहेंगे, किंतु वह गति निम्नगामी होगी. आपका पतन होगा.

– स्वामी शिवानंद सरस्वती

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